आबादी बढ़ती रहे, बढ़ती जाती मांग।
मांगत-मांगत कई मरे, मरी न मन की मांग।।
शब्दार्थ :- आबादी = जनसंख्या, मांग = किसी वस्तु की कमी अनुभव होना
भावार्थ:- जैसे-जैसे आबादी बढ़ी पानी की मांग भी बढ़ती गई पानी के अपव्यय से भूमि में संग्रहित भूमिगत पानी की गांव में भी उसी गति के कमी आती गई। ’वाणी’ कविराज कहते है कि पानी-पानी कहते हुए लाखों व्यक्तियों ने अपने प्राण दे दिए फिर भी पानी की मांग पूरी नहीं हुई पानी सहज उपलब्ध होना बन्द हो गया। हमस ब वृक्षारोपण द्वारा ऐसा प्रयास करें कि पानी ज्यादा बरसे, यही इस समय की सबसे बड़ी पुकार है।