गरज गरज इन्द्र गरजे, बरसे मूसलधार।
जो घरेलू टेंक भरे, नहाय सातों वार।।
शब्दार्थ :- गरजे = मेघ-गर्जन, बरसे मूसलधार = तेज वर्षा होना, नहाय = स्नान करना
भावार्थ:- वर्षाकाल में जब-जब भी तेज वर्षा होती, बारिश की झड़ी लगा करती है, तब-तब ज्ञानीजन अपने घरों के पानी के टैंक भर लेते हैं । आवश्यकानुसार थोड़ा-थोड़ा पानी खर्च करते हैं जो व्यक्ति पानी का इतना महत्व समझते है उन्हें सप्ताह के सातो दिन सभी सदस्यों सहि नहाने का परम सौभाग्य मिलता है।
’वाणी’ कविराज यह कहना चाहते है कि बैंक में जमा राषि की भांति है भूमिगत पानी की मात्रा निष्चित है हम जितना ज्यादा खर्च करेंगे उतना जल्दी हमारे सामने जलाभाव का संकट उपस्थित होगा ।