Jangal Me Mangal Rahe /जंगल में मंगल रहे - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD108)

मानवीय शिक्षा मिले, सारे करें प्रयास।
जंगल भी मंगल बने, ऐसा होय विकास।।

शब्दार्थ :- जंगल में मंगल = अतिसाधारण परिस्थितियों में भी अच्छा जीवन बिताना ।

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि सभी व्यक्तियों को मानवीय षिक्षा एवं जीवन के अनुभवों को आत्मसात करने के पर्याप्त अवसर मिलते रहने चाहिए। कम से कम वह इतना सीख ले कि यह मनुष्य जीवन क्या है ? इस जीवन में कौन से कार्य अधिक करने चाहिए और कौन से कार्य नहीं करने चाहिए । इतना प्रयास हर प्रशासन व हर नागरिक को करना चाहिए। ऐसे ज्ञानार्जन के पष्चात् ही हम ईष्वार प्रस्त साधारण सी सुख सुविधाओं में भी श्रेष्ठ जीवन व्यतीत कर सकेंगें। सभी के विकास की मंगल भावनाओं को लेकर कदम से कदम मिलाकर चलने का हाथ, से हाथ मिला कर साथ चलने के फायदां को आम आदमी समझ सकेगें, ऐसी व्यवस्थाऐं सर्वत्र उपलब्ध कराई जानी अपेक्षित हैं।