फिफ्टी- फिफ्टी हो गए, बहरे लाखों कान ।
अब धीरे बोले नहीं, गई निराली शान।।
शब्दार्थ :- फिफ्टी- फिफ्टी = लगभग आधे-आधे, जाय निराली षान = कानों के सुनने की स्वभाविक प्रवृति
भावार्थ:- महानगरों की स्थिति ध्वनि-प्रदूषण के कारण सर्वाधिक चिन्ताजनक बन चुकी हैं। हजारों व्यक्ति ऐसे मिल जाएंगे जो लगभग आधे बहरे हो चुके हैं । ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि अब भी स्थिति पूर्णतः अनियंत्रित नहीं हुई है। यदि सभी प्रयास करें तो इसमें काफी हद तक सफलता प्राप्त की जा सकती है। यदि इस और कुछ भी ध्यान नहीं दिया गया तो एक दिन स्थिति ऐसी आ जावेगी कि तीव्र ध्वनि प्रदूषित क्षैत्रो में अधिकांष लोग बहरे हो जाएंगें जिससे उनकी संतानो के मित्रों,परिजनों व संग संबंधियों कमी के लिए नई परेशानियां उत्पन्न करेगी ।