नियम साठ में यूँ कहा, पशु क्रुरता न होय।
धारा ग्यारह देखले, जेल-जेल तू रोय।।
भावार्थ:- सन् 1960 में पशु कू्ररता निरोधक अधिनियम पारित किया गया। उसका उद्देष्य यह था कि पषूओं को दी जाने वाली अनावश्यक पीड़ा को रोका जा सके। दूसरे अधिनियम की धारा 11 के अन्तर्गत दर्शाया गया है कि यदि कोई व्यक्ति पशुओं पर अत्याचार करना है तो इसे अपराध की श्रेणी में मानते हुए उस पर अर्थिक या उसे जेल या दोनो ही प्रकार की सजाएं मिल सकती हैं ।