यदि चल-हाॅस्पीटल चलें, करने पशु उपचार ।
रोग-मुक्त पशुधन रहे, करलो जल्दी विचार।।
भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि ऐसे चल हाॅस्पीटल भी होने चाहिए जो गांव-गांव,शहर-शहर में जाकर रोगियों का उपचार करें ।........ जिस प्रकार मनुष्य अपने बारे में सोचता रहता है कि उसको किसी प्रकार का रोग नहीं सौ वषो तक वह सानन्द जीए निरोग रहने के लिए वह न केवल सोचता बल्कि सतत् प्रयत्नशील भी रहता है।
अनवरत चलने वाले इस स्वचिन्तन से बाहर निकल क रवह पशुओं के लिए भी कुछ सोचे कि किस प्रकार उनके उपचार की व्यवस्थाओं में आसानी से सुधार लाया जा सकता है। इन तथ्यों पर भी विद्वजनों पर्याप्त विचार-विमर्श होना परमावश्यक है।