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जीवन ढल गया...........
जो जलना था वो सब जल गया ।
जो गलना था वो सब गल गया ।।
'वाणी' दर्द, दर्द सा लगता नहीं अब ।
दर्द के सांचों में जीवन ढल गया ।।
कवि अमृत 'वाणी'
दोश्त
आओ , सभी से हॅंस-हॅंस कर मिले ।
मतलबी आॅंखें कल खुले ना खुले ।।
’वाणी’ ऐसे हाथ मिलाओ दोश्तो से ।
जमाना कहे आज इनकेे नशीब खुले ।।
कवि अमृत 'वाणी'
नोटा री गड्डियां
नोटा री गड्डियां
अन कलदारां री खनक में तो
ई दुनिया में हगलाई हमझे ।
पण लाखीणा मनक तो वैज वेवे
जो रोजाना
मनक ने मनक हमझे ॥
'वाणी'
अतरी झट बदल जावे
ओळखाण मनकां की
आछा दनां में मनक
मनक ने माछर हमझे ।
अन मुसीबतां में
मनक
माछर नै मनक हमझे ॥
कवि अमृत 'वाणी'
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