Kar-Kar Ke Manuhaar / कर-कर के मनुहार - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD36)



साथी पैदल चल रहा, रोको अपनी कार।
फाटक खोल बिठायलो, कर-कर के मनुहार।।

शब्दार्थ :- मनुहार = अपनी ओर से पहल करना

भावार्थ:- आप अपने वाहन पर जा रहे हैं और संयोगवश आपका मित्र पैदल चल रहा हैं। दोनों एक ही दिशा की ओर जा रहे हैं तो हमें चाहिए कि हम अपनी मोटरसाईकिल, कार बस जो हो उसे रोेक कर मित्र को मनुहार सहित अपने वाहन में बिठाएं इससे वह शीघ्र अपने गन्तव्य पर पहुंचेगा और आपकी मित्रता और भी सुदृढ़ होगी ।







Vekal Pyaare Aapake / वेकल प्यारे आपके , - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD35)


वेकल प्यारे आप के, करते रहना चेक।
कितना धूंआ छोड़ते, कैसे दोनों बे्रक ।।

शब्दार्थ:-       वेकल = वाहन, चेक = जांचना

भावार्थ:-     ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि हमारे पास जितने भी स्वचालित वाहन उपलब्ध हैं, हमें चाहिए कि हम उन्हें नियमित चैक कराते रहें । यांत्रिक त्रुटियों की तुरन्त मरम्मत करवानी चाहिए विशेष तौर पर ध्यान दें कि इण्डीकेटर की लाईटें कैसी है अति आवष्यक यह है कि गाड़ी के ब्रेक कैसे हैं, समय-समय पर इन सभी बातों का ध्यान रखने से गाड़ी कई वर्षाे तक अनतरत आपको वाहन सुख देगी ।

Choolhe Aise Kray Karen / चूल्हे ऐसे क्रय करें, - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD34)


चूल्हे ऐसे क्रय करें, धुंआ सीधा जाय।
भोजन कितना ही बनो, आंसू एक न आय।।

शब्दार्थ:-    क्रय = खरीदना

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि हमें चाएि कि हम  ऐसे चूल्हे खरीदें जिनमे गोल पाईप के द्वारा धुंआ सीधा ऊपर जा सके ऐसी स्थिति में गृहिणी कितना ही भोजन बनाए उनके नैत्रों को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचेगी। जीवनभर भोजन बनाने पर भी आंख से एक आंसू नहीं निकलेगा। गृहणी के स्वास्थ्य से मात्र बाल-बच्चे ही नहीं पूरे परिवार का स्वास्थ्य जुड़ा हुआ है। इसलिए हमें उनके स्वास्थ्य के बारे में भी भलीभांति सोचते रहना चाहिए ।



Dhuva Jyaada Dey / धुंआ ज्यादा देय , - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD33)



आम नीम के पेड़ जोैं, धुंआ ज्यादा देय ।
यदि मजबूरी आ गई, बबूल को ही लेय।।

शब्दार्थ:-    मजबूरी = विवशता

भावार्थ:-    वनस्पति जगत में  आम व नीम दो ऐसे पेड़ हैं जो ज्यादा धुआँ देने के कारण नेत्रों व इमारतों को ज्यादा हानि पहुंचाते है। जहां तक संभव हो हमें भोजन पकानें में इनके प्रयोग से बचना चाहिए। ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि सैसुएरिना और बबूल की लकड़ी आम व नीम के वनिस्पत कम धुंआ देती । यदि हम विवष हैं तो जलाने की लकड़ी के अन्तर्गत आम व नीम के बजाय बबूल सेसुएरिना आदि पेड़ों का उपयोग करना ज्यादा श्रेष्ठ है।

Esid Varsha Hoy / एसिड वर्षा होय , - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD32)



गोबर उपयोगी बड़ा, गोबर गैस जलाय।
कमल नयन कहते सभी, चश्मा नहीं लगाय।।

शब्दार्थ:-     कमल नयन = कमल जैसे नेत्रों वाले,

भावार्थ:-       ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि जिन घरों में मवेशी हो उनके लिए गोबर गेस सयंत्र बड़ा लाभदायक सिद्ध हो सकता हैं । इससे धुंआ नहीं होता है। गोबर से ही गैस उत्पन्न होती है अर्थात् अतिरिक्त खर्चा कुछ भी नहीं होता। इसमें सबसे बड़ा लाभ यही है कि बार-बार पैसा खर्च नहीं होता, जीवनपर्यन्त आंखें धुंए की वजह से खराब नहीं होती हैं जीवनभर सभी ’कमल नयन’ कह कर ही संबोधित करेंगे। नेत्रों को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होगी ऐनक से आप सदेव दूर रहेंगे ।




Doi Dhruv Gabrai / दोई ध्रुव घबराई , - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD31)


सी ओ टू केे नाम से, दोय ध्रुव घबराय।
आँसू इतने बह रहे, धरती डूबी जाय।।

शब्दार्थ:-   सी ओ टू  = कार्बनडाईआक्साइड, धरती डूबी जाय = समुद्र का जलस्तर बढ़ना ।

भावार्थ:-     ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि कार्बनडाईआक्साइड का नाम इतना भयंकर है कि दोनों उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव भी उनके प्रभाव से घबराते हैं । उक्त गैस की मात्रा बढ़ने का एक प्रमुख कुपरिणाम यह निकला कि प्रतिवर्ष वातावरण का तापमान बढ़ता ही जा रहा है। तापमान बढ़ने से धु्रवों की बर्फ इतनी पिघलती जा रही है कि समुद्रों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा और निकटवर्ती शहर जलमग्न होते जा रहे हैं। इस विश्वव्यापी संकट से झुझने के लिए शीघ्र ही हम सभी को एकजुट होना होगा।


Hotee Na Ojon Jo / होती ना ओजोन जो , - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD30)


होती ना ओजोन जो, जल जाता संसार।
अब उसकी रक्षा करें, करलो बैठ विचार।

शब्दार्थ:-   जल जाता  = सूर्य द्वारा आने वाली हानिकारक किरणों से नष्ट होना

भावार्थ:-         ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि यदि हमारी पृथ्वी के चारों ओर वायुमण्डल के ऊपर में  यह ओजोन परत नहीं होती तो संसार को बहुत बड़ी क्षति उठानी पड़ती । यह मानवजाति अपने अस्तित्व में ही नहीं आ पाती। वही ओजोन परत अब धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही हैं । नाइट्रोजन की 3865 लाख टन की मात्रा की तुलना में ओजोन की मात्रा 3,300 लाख टन है। ओजोन परत को हानि पहुंचाने वाले कारकों में, नाइट्रोजन आक्साइड व आवाज की गति से तेज चलने वाले वायुयान और क्लोरो फ्लोरोफ्लूरोकर्बन प्रमुख है। हम सभी को चाहिए कि हम पर्यावरण के सभी राष्ट्रीय कार्यक्रमों में पूर्ण सक्रिय रहें ओजोन परत को पूर्ववत् उपयोगी बनाने में अधिकाधिक सहयोग दें ।


Esid Varsha Hoy / एसिड वर्षा होय , - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD29)



इन्द्र देव रूठे जहां, एसिड वर्षा होय ।
फसल मरी मछली मरी, रोय-रोय सब रोय।

शब्दार्थ:-     इन्द्रदेव = वर्षा के देवता, एसिड वर्षा = अम्ल वर्षा

भावार्थ:-    वर्षा के देवता इन्द्रराज जहां अप्रसन्न हो जाते हैं वहां अम्ल वर्षा होती है।  सामान्यतया वर्षा के जल में अम्ल होता ही हैं किन्तु कभी-कभी हाइड्रोजन की मात्रा पांच से कम हो जाती है तो उसे अम्ल वर्षा कहते है ऐसी वर्षा उद्योगों से अधिक मात्रा में निकले नाइट्रोजन और गन्धक के आक्साइड्स के कारण ही होती हैं इससे फसलों के नुकसान के साथ - साथ नदी तालाबों की मछलियां तक मर जाती हैं इसका एक कुपरिणाम यह भी निकलता हैं कि कैडमियम और पारा जैसे भारी धातु पौधों के द्वारा हमारे भोजन में प्रवेश पा जाते है, जिससे जन सामान्य के स्वास्थ्य में गिरावट आने लगती है।



Pee Do Sau Sigaret / पी दो सौ सिगरेट, - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD28)



तीन घण्टे चूल्हा, जला, समझ बराबर वेट ।
पति-पत्नि समान हुए, पी दो सौ सिगरेट।

शब्दार्थ:-      वेट = भार, पी = पीना

भावार्थ:-    ’वाणी’ कविराज कहते है कि एक वैज्ञानिक अध्ययन से यह सिद्ध हुआ कि लकड़ी के चूल्हे पर रसोई पकाते समय हम स्वांस के माध्यम से जो कण निगलते हैं वे विश्व स्वास्थ्य संगठन से निरापद समझी जाने वाली मात्रा से 40 गुणा अधिक है। इसी बात को हम यूं भी कह सकते हैं कि चुल्हा फूंकते समय तीन घण्टों के भीतर डाले 20 पेकेट्स यानि कि 20 ग 10 = 200 सिगरेट पीने के बराबर होती है। इस प्रकार यदि पतिदेव प्रतिदिन 20 पैकेट सिगरेट पीते हैं और पत्नी 3 घण्टे चूल्हा फूंकती हैं तो स्वास्थ्य हानि की दृष्टि से दोनों बराबर हैं ।





Kainsar Rogee Hoy / कैंसर रोगी होय , - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD27)



चूल्हा फूंके जो बहू, लडक़ी मेडम होय।
कार्बनकण जा स्वांस  से, कैंसर रोगी होय।।

शब्दार्थ:-   चूल्हा फूंके = लकड़ी के चूल्हे पर भोजन बनाना कैंसर = विष ग्रन्थि नामक रोग

भावार्थ:-   जो गृहणियां लकड़ी द्वारा चूल्हे पर भोजन बनाती है किसी भी उम्र की लड़की मेडम, बुढिया कोई भी हो स्वास के माध्यम से धुॅए के कार्बन कण उसके शरीर में चले जाते हैं । लम्बे समय तक नियमित इसी प्रक्रिया के फलस्वरूप अधिकाषं औरतों में कैंसर नामक असाध्य रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। कैंसर ऐसा रोग है, जिसका बचाव ही उपचार है। यदि यह रोग एक बार हो जाता है तो फिर पूर्ण स्वस्थ्य होना असंभव है। 


Priy Parat Ojon / प्रिय परत ओजोन , - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD26)




कार्बन डाईआक्साइड, समझो है यह कौन।
प्रति दिन जो बिगाड़ रही, प्रिय परत ओजोन ।।

शब्दार्थ:-  दिन पे दिन = प्रतिदिन, ओजोन = एक ऐसी गेसीय परत जो सूर्य से आने वाले हानिकारक किरणों को अवशोषित कर लेती है।

भावार्थ:-    ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि कार्बनडाईआक्साइड अब हमें भलीभांति समझ लेना है कि आखिर यह कौन है । हमें किस प्रकार हानि पहूंचाती है । यह ज्ञात होना चाहिए कि यही गेस ओजोन परत में कई बड़े-बड़े छिद्र कर चुकी है। सूर्य की किरणें सीधी पृथ्वी पर आने लग लग गई जिससे चर्म रोगियों की संख्या बढ़ रही हैं । हमें शीघ्र ही सामुहिक प्रत्यनों द्वारा इसका स्थाई समाधान करना होगा।



Pranvayu Humko Mili / प्राणवायु हमको मिली, - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD25)


प्राण वायु हय को मिली, प्रतिशत केवल बीस।
कोशिशे  सब ऐसा करें, कभी न हो उन्नीस।।

शब्दार्थ:-       प्राणवायु = जिसवायु, से हमारी स्वास व धड़कन चलती है (आक्सीजन) गैस

भावार्थ:-   ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि प्रकृति में विभिन्न प्रकार की गैसे हैं लेकिन जो गैस (वायु) मानव-जाति व प्राणी मात्र के जीवनयापन के आधार है वह केवल 20 प्रतिशत ही है। हम सभी को चाहिए कि एक ऐसा सामूहिक प्रयास करें, जिनके फलस्वरूप पर्यावरण में आक्सीजन की मात्रा की कभी भी कमी ना आए । बीस प्रतिशत से घट कर कभी-उन्नीस नहीं हो । यदि हम इस ओर पूर्ण सजग रहें तो हमें सभी आवष्यक वस्तुएं प्राकृतिक उपहार स्वरूप हमंे हर समय मिलती रहेगी ।


Fir Dena Updash / फिर देना उपदेश, - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD24)



स्वच्छता खुद की रखों फिर देना उपदेश।
उपदेश तभी आपका, बदलेगा परिवेश हम ।।

शब्दार्थ:-     खुद की = स्वयं की, परिवेश  = आस-पास, का प्राकृतिक वातावरण

भावार्थ:-      पहले हम हमारी स्वयं की व घर की साफ-सफाई की ओर पर्याप्त ध्यान दें। हमारी कथनी-करनी मे अन्तर नहीं हो, फिर यदि हम किसी को कोई बात कहेंगे तो वह अधिक श्रोताओं द्वारा अमल में लाई जावेगी। प्रभी हमारी आदेश  सर्वत्र प्रभावी सिद्ध होगा। फलस्वरूप हजारो व्यक्ति जब पर्यावरण शुद्धिकरण के इस विश्व व्यापी अभियान से जुडेंगे तो हमें आशातीत सफलता प्राप्त होगी ।


Hai Ruchi Paryavaran Me /हे रूचि पर्यावरण में - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD23)



है रूचि पर्यावरण में, लीडर तुझे बनाय।
गांव-शहर को हम सभी, मिलकर खूब सजाय ।।

शब्दार्थ:-   पटेल = प्रमुख व्यक्ति

भावार्थ:-   यदि आप इस पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए संकल्प लेते हैं तो हम सभी आपको इस गांव के व समाज के पटेल नियुक्त करते है। आपके मार्ग- दर्शन व पदचिन्हों पर चलते हुए, हम सभी इस प्राकृतिक परिवेश को संतुलित अवस्था में लाने का प्रयास करेंगे। इसका लाभ हमें ही नहीं हमारी आने वाली पीढ़ीयों को भी मिलेगा। आओ अपने गांव शहर को पुनः संजाएं


Saaf Safai Ruchi Badhi / साफ सफाई रूचि बढ़़ी - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD22)


साफ सफाई रूचि बढ़ी वह पाए पुरस्कार।
सबसे बड़ी समझ यही, कुदरत का उपकार ।।

शब्दार्थ:-   बड़ी समझ = सर्वश्रेष्ठ विचार, कुदरत = प्रकृति, उपकार = भलाई

भावार्थ:-   यदि हम हमारी मानसिकता मैं बदलाव लाते हुए साफ सफाई की ओर विषेष ध्यान देते हैं तो हमारी इस मनोवृत्ति की सर्वत्र प्रशंसा होगी। कई स्थानों पर हमें पुरष्कृत किया जावेगा। हमारे लाखों अनुज हमसे नई प्रेरणा लेकर पर्यावरण शुद्धीकरण के इन पुनीत कार्यों में लगेंगे । ’वाणी’ कविराज कहते है कि यहि सर्वश्रष्ठ विचार है, इस प्रकृति के प्रति हमारी ओर से यही एक अविस्मरणीय सेवा होगी जिसका लाभ प्राणी मात्र को मिलेगा ।


Ye Noto Ke Paid / ये नोटों के पेड - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD21)



पर्यावरण शुद्ध करें, लगा-लगा कर पेड़ ।
सेठ बनना कुदरत के, ये नोटों के पेड़।।

शब्दार्थ:-  पर्यावरण  = हमारा प्राकृतिक परिवेश, नोटो के पेड़ = आर्थिक स्थिति श्रेष्ठ होना

भावार्थ:-  ’वाणी’ कविराज कहना चाहते है कि हमें पर्यावरण को अतिशीघ्र शुद्ध करने का एक विशाल अभियान प्रारम्भ करना होगा । जगह-जगह पर पेड़ लगा उन्हें नियमित जल पिलाते हुए अच्छे ढंग से बड़ा किया तो अवश्य हरियाली बढ़ेगी और वर्षा अधिक होगी। फलस्वरूप सभी प्रकार के उत्पादन भी बढ़ेगें क्रय-विक्रय में वृद्धि होने से सर्वत्र अर्थिक सम्पन्नता इस प्रकार बढ़ेगी। क्रय-विक्रय में वृद्धि होने से सर्वत्र अर्थिक सम्पन्नता इस प्रकार बढे़गी जैसे हमारे लगाएं हुए पौधें नोटों के पेड़ की तरह फल रहे हों हमें आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने के लिए एवं स्वस्थ्य जीवन जीने के लिए प्राकृतिक संतुलन की ओर पर्याप्त ध्यान देना होगा ।



Chije Jo Nakam / चीजें जो नाकाम - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD20)


शहर-हर में चल रहा, चीजें जो नाकाम |
 बन-बन कर फिर बिक रही, वही पुराना नाम।।

शब्दार्थ :- नाकाम  = अनुपयोगी, चीजें = वस्तुएं

भावार्थ:- आकल गांव-गांव, शहर-शहर में एक नया सा अभियान चल पड़ा हैं कि कहीं भी जो बेकार की सस्तुएं है, जिन्हें आज क हम फैंक दिया करते थे, उनका पुनः निर्माण कर दैनिक जीवनोपयोगी कोई छोटी-बड़ी वस्तु बनाकर उपयोग में लिया जाता रहा है । पुनः निर्मित वस्तुओं का क्रय-विक्रय भी होता है। इस प्रकार छोटा-बड़ा रोजगार भी मिल जाता है । आसानी से समय व्यतीत होने से साथ-साथ घर की कुछ आय भी बढ़ती है।






Punar chakran usko kahe / पुनर्चक्रण उसको कहें - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD19)



पुनर्चक्रण उसको कहें, चीजे जो बेकार।
कोई युक्ति लगाय के, करलें फिर तैयार ।।

शब्दार्थ :-   पुनचक्रण  = टूटी-फटी, जली कटी बेकार की वस्तु से पुनः नई वस्तु बना लेना ।

भावार्थ:-  घर, कार्यालय व उद्योग धन्धों में कई वस्तुओं को हम बेकार की समझ कर फैंक देते हैं । ’वाणी’ कविराज यह कहना चाहते हैं कि हम नई विधियों का उपयोग करते हुए उससे पुनः वही वस्तु बनाएं या दैनिक जीवनोपयोगी कोई अन्य वस्तु बना कर यथा संभव लाभ उठाएं फैंकने व नकारा समझ कर त्यागने योग्य चीजों को किसी भी प्रकार से पुनः उपयोगी बना लेने की क्रिया को ही पुनर्चक्रण कहते हैं । इससे कम लागत पर कई प्रकार की आवष्यक  वस्तुए तैयार हो सकती हैं ।   


Idhar Udhar Feke Nahi / इधर-उधर फैकें नहीं - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD18)



इधर-उधर फैंके नहीं, सब्जी के अवशेष।

                     गाय भैंस और बकरी, वहीं करो सब शेष।।                                       

शब्दार्थ :- अवशेष = बचे हुए भाग, शेष = प्रस्तुत करना


भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज यह समझाना चाहते हैं कि घरों में जो हरी सब्जी आती है, बनाते समय उसके कुछ डण्ठल, छिलके और बीज जो कुछ भी भाग पकाने की दृष्टि से अनुपयोगी समझ कर उन्हें अवसर फेंक देते हैं। उन्हें नहीं फेंकना चाहिए । यदि आपके घर में गाय, भैंस, बकरी , मुर्गा, आदि पालतु जानवर हैं तो उनके सामन खाने के लिए डाल दें । यदि अपने घर में नहीं है तो पास-पड़ोस में जिसके यहां भी हो वहा ले जाकर उन्हें दे देना चाहिए । यह श्रेष्ठ विचार है।





Kar Chhota Vyap / कर छोटा व्यापार - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD17)




समाचार जब पढ़ लिए, क्यों फेंका अखबार।

थैलियां कागज की बना, कर छोटा व्यापार।।


शब्दार्थ :- उपकार = भलाई का कार्य थोड़ा = छोटा काम

भावार्थ:- दैनिक जीवन में कई वस्तुएं ऐसी होती हैं जिनका उपयोग केवल एक दिन के लिए एवं एक ही बार होता है। समाचार पत्र प्रतिदिन नया आता है। जिसके लिए कई पाठक द्वार पर खड़े-खड़े प्रतिक्षा करते हैं । समाचार पत्र हाथ में आने के बाद पुराने वाले की ओर कोई देखता भी नहीं, यहां तक कि उसे फेंक दिया जाता है । उसका अपराध मात्र यही कि आज वह पुराना हो गया।
’वाणी’ कविराज कहते है कि उन समाचार पत्रों के कागज की भी थैलियां बना कर उसे पुनः उपयोग के योग्य बना सकते हैं। यदि सभी ऐसी बातों पर अमल करते हैं तो यह हमारे द्वारा प्रकृति के प्रति एक अच्छा उपकार होगा । कर्म कसे अर्थिक लान होगा।






Pani Ka Man / पानी का मान, - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD16)




ढ़ाणी-ढ़ाणी गांव में, चला यही अभियान।

पानी-पानी ना करो, कर पानी का मान।।

शब्दार्थ :- पानी का  मान = पानी के महत्व को समझना एवं उसे पूर्ण सम्मान देना

भावार्थ:-अधिकांश गांवों-शहरों में जल-समस्या विकराल रूप से बढ़ी हुई है । इससे मुक्ति पाने के लिए राज्य सरकारों द्वारा कई छोटे-बड़े अभियान प्रारम्भ किए गए हैं । हमारी सरकारों ने लाखों-करोड़ो रूपये के कई बजट इन कार्यों के लिए सुनिश्चित किए हैं। ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि हमें घबराने की आवश्यकता नहीं हैं हमें तो पानी के महत्व को समझ कर उसे मितव्यतापूर्वक खर्च करना चाहिए। ..........करने पानी खपत इतनी कम होगी, परस्पर वातावरण उतना ही सौहार्दपूर्ण बना रहेगा ।





Tute Fute Mal Se / टूटे-फूटे माल से, - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD15)




टूटे-फूटे माल से, नए बनाएं माल ।
घर में दुकान खोलना, बनना माला-माल ।।


शब्दार्थ :-  माल = सामग्री मालामाल = घनवान होना

भावार्थ:- नकारा सामानों से कई प्रकार की नई-नई सामग्रियां आसानी से बनाई जा सकती हैं । पुनर्निर्मित वस्तुओं को बेचने के लिए तुम्हें बहुत दूर जाने की या बहुत महंगी दूकानें खरीदने की भी आवश्यकता नहीं है। अपने ही घर में एक छोटी सी दुकान लगा कर स्वनिर्मित वस्तुएं बेच कर अच्छा पैसा कमाया जा सकता हैं ।
’वाणी’ कविराज कहते हैं कि बस एक बार इन कार्यो के प्रारम्भ होने की बात है फिर तो ये निरन्तर चलते रहेंगे |



Badhe Ap ki Aay / बढे़ आपकी आय - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD14)





चीजें जो बेकार हैं, जरा दिमाग लगाय ।

नए रुप में फिर ढले, बढे़ आपकी आय ।।

शब्दार्थ :-    जरा = थोड़ा सा, दिमाग लगाय = बौद्धिक परिश्रम करना

भावार्थ:-   बेकार समझी जाने वाली उन चीजों को कुछ नए दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए। कुछ लघु प्रषिक्षण लेकर हम उन्हीं चीजों से कई छोटे-बड़े निर्माण-कार्य सीख सकते हैं । ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि यदि इन कार्यो को आपने एक बार प्रारंभ कर दिया तो परिवार के छोटे-बड़े बच्चे भी अच्छा सहयोग देने लगेंगे, फलस्वरूप उत्पादन ज्यादा होगा । इससें घरों की आमदनी बढ़ेगी और लक्ष्मी भी प्रसन्न रहेगी ।




Plastic Ki Jo Botle / प्लास्टिक की जो बोतले - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD13)



प्लास्टिक की बोतलें, समझो ना बेकार ।
फूलदान सुन्दर बने, घर-घर में श्रृंगार ।।

शब्दार्थ :- बेकार = व्यर्थ की वस्तु, घर का श्रृंगार = घर की सुन्दरता का बढ़ना ।

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि जिन वस्तुओं को हम घर से बाहर फेंकने जा रहे हैं उनके बारे में पहले थोड़ा सा विचार करें । यदि उनसे कुछ नया निर्माण हो सकता है तो वह नवसृजन अवश्य करें । किसी भी चीज को आप व्यर्थ की वस्तु ना समझे। यथा प्लास्टिक को बोतलों से हम आसानी से सुन्दर फूलदान बना कर घरों का श्रृंगार कर सकते हैं । इससे घरों की सुन्दरता एवं आत्म संतुष्टि दोनों में आशातीत वृद्धि होगी ।




Chije Nai Banay / चीजे नई बनाय - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD12)



कूड़ा करकट हैं कहीं, नहीं फेंकने जाय ।

थोड़ी मेहनत करके, चीजे नई बनाय ।।

शब्दार्थ :- कूड़ा करकट = बेकार की फेंकने योग्य वस्तुएं ।

भावार्थ:- घर, कार्यालय, कारखानों में कई वस्तुएं इतनी अनुपयोगी हो जाती हैं कि उन्हें फेंकने के सिवाय हमें और कुछ सूझता ही नहीं। सामान्यतया अधिकांश परिवारों में ऐसा ही होता है ।
’वाणी’ कविराज कहते है कि उन्हें फेंकना तो बहुत ही आसान है। हमें चाहिए कि थोड़ा परिश्रम कर नई चीज बनाएं। उदाहरणार्थ कुछ खाली प्लास्टिक की बोतलों को काट कर फूलदानी बनाकर घरों को सजा सकते है। इससे आपके घरों के साथ-साथ पूरे शहर की सोभा भी बढेगी ।







Samay Ruthta Jay / समय रूठता जाय - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD11)



संतुलन बिगड़ता गया, विकट घड़ी यह आय ।

समझदार समझे नही, समय रूठता जाय ।।


शब्दार्थ :- विकटघड़ी = चिन्ताजनक स्थिति

भावार्थ:- लम्बे समय से पर्यावरण के प्रति उदासीन रहने से आज स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि आम आदमी का सामान्य जीवन कई प्रकार की कठिनाइयों से सामना करते हुए पराजय स्वीकार कर चुका है। कहीं एसिड-वर्षा तो कहीं अनावृष्टि से विगत कई वर्षो से लगातार अकाल की परि स्थितियों से सामना करना पड़ रहा है।
’वाणी’ कविराज कहते हैं कि कुछ बुद्धिजीवी लोग भूत भविष्य को समझने में सक्षमह हैं, किन्तु उनमें राष्ट्रीय भावों की कमी के कारण इन कार्यो के लिए पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं । यह सत्य है कि यदि हम इस समय भी नही संभले तो फिर प्रकृति हम से और ज्यादा रूठ जाएगी । स्थितियां इससे भी ज्यादा भयावह होंगी, इसलिए अभी से ही हमें दूरदर्शिता के साथ ठोस कदम उठाने होंगे ।






Jhule Lakho Jhulte / झूले लाखो जुलते - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD010)



झूले लाखों झुलते, हरे पेड़ की शाख ।
पूछे शाखाएं सभी, सूखी शाख कैसे ।।

शब्दार्थ:- शाख = ड़ाली,

भावार्थ:- ’’वाणी’’ कविराज कहते हैं कि जन्म के पष्चात कई महिनों तक हरे-भरे पेड़ों की डालियों पर तुम झुले थे पेड़ों की ठण्डी छायाओं में हंसते-खेलते हुए बचपन व्यतीत हुआ । आज उन्हीं पेड़-पौधों पर तुम्हारी आक्रामक दृष्टि क्यों टिकी हुई है। क्या यही उनका अपराध है उन्होंने तुम्हें शीतल छाया दी, मन्द-मन्द शीतल पवन से तुम्हारे बचपन को सुवासित किया । हमें चाहिए कि हम तमाम वनस्पति की अन्र्तमन से रक्षा करने का दृढ़ संकल्प लें। इतना करने पर पेड़-पौधों का मानव जाति पर चढ़ा हुआ कर्ज तो नहीं मगर ब्याज अवश्य  चुका सकेंगे।



Pani Jag Ka Pran He / पानी जग का प्राण है - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD09)



पानी जग का प्राण है, वारें इस पर प्राण ।
ह्नदय पेड़ के जीतलें, वही करेंगे त्राण ।।

शब्दार्थ:- जग = संसार, वारो =न्यौछावर करना, प्राण = सम्पूर्ण जीवन, त्राण = रक्षा

भावार्थ:- पानी संसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । लाखों क्रियाएं जल की साक्षी में अथवा सहयोग से ही पूर्ण होती है । जल ही जीवन है । हमें जलसंग्रहण, जल प्रदूषण से बचाव के लिए यदि प्राणों की बाजी लगानी पड़े तो भी संकोच नहीं करना चाहिए ।
’’वाणी’’ कविराज कहते हैं कि निस्वार्थ भाव से नियमित सेवा करते हुए हम, पेड़ों का भी  ह्नदय जीत सकते हैं । वृक्ष इस जीवन के ही ........... पीढ़ियों व युगों - युगे पुराने हमारे सच्चे साथी हैं। पेड़ ही प्राणघातक असाध्य बीमारियों से औषधियों द्वारा हमारी जीवन रक्षा करते हैं । इसलिए हमें चाहिए की हम भी इनकी तन मन धन से रक्षा का दृढ़ संकल्प लेवें।


Ham Hi Jimmedar He / हम ही जिम्मेदार है - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD08)




हम ही जिम्मेदार हैं, वन हो रहे उजाड़ ।
फसलें सब सूखी पड़ी, सूख रहे हैं बाड़ ।।


शब्दार्थ :- जिम्मेदार = अपना उत्तरदायित्व समझने वाले, उजाड़ = वन नष्ट होना, खेतन बाड़ = खेतों की बाड़

भावार्थ:- अहर्निष निजि चिन्तन में व्यस्त रहने वाले है मषीनी मानव ।  तुम्हारे उपर समाज एवं राष्ट्र की कई जिम्मेदारियां है । उन क्षेत्रों में भी पूर्ण सक्रिय रहते हुए सभी उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना समाज द्वारा अपेक्षित है । हे आधुनिक मानव ! ये उजड़े हुए वन, सूखी फसलें जलाभाव से सूखे हुए खेत, और खेतों की बाड़ सभी कुछ तुम्हारी लापरवाहियों एवं निजी स्वार्थों के ही परिणाम हैं । ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि हम सभी को जीवनभर निजी कार्यों के साथ-साथ सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं पर भी पर्याप्त ध्यान देना चाहिए ।



Lagay Podhe Char / लगाय पौधे चार - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD07)



अब  आँसू  क्यों आ रहे, करलें एक विचार ।
एक-एक परिवार के, लगाय पौधे चार ।।

शब्दार्थ :-     अश्रु = दुःख के आँसू

भावार्थ:-    पर्यावरण संतुलन बिगड़ने केकारण आज हम विभिन्न प्रकार से दुःख उठाते हुए खून के आंसू रो रहे हैं कहीं वर्षा नहीं हो रही तो कहीं एसिड की वर्षा हो रही है ’वाणी’ कविराज कहते है कि अब इस प्रकार व्यर्थ आंसू बहाने से यह विकराल समस्या हल नहीं होगी । हम सभी को मिलजुल कर सामुहिक प्रयास हेतु विचार-विर्मष करना होगा । यदि हम ऐसा दृढ़ संकल्प करले कि एक-एक परिवार इच्छित स्थान पर चार-चार पौधे लगा कर अपने परिजन की भांति उनकी देख-रेख करे तो कुछ ही वर्षो मंे यह प्राकृतिक समस्या स्थाई रूप से दूर हो सकती है। हमे ऐसे ही कुछ प्रयास करने होगें ।


Jivan Amar Banay / जीवन अमर बनाय - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD06)




पीपल पूजे गोरड़ी गोरा पति तब पाय ।
पल-पल परमानन्द है, जीवन अमर बनाय ।।

शब्दार्थ :- पूजे = पूजन करना, गोरड़ी = अविवाह बालिका गोरा = गौरवर्ण

भावार्थ:- श्रेष्ठ वर प्राप्ति हेतु भारतीय संस्कृति में विवाहयोग्य कुंवारी लड़कियां पीपल की पूजा करती हैं । पूजा, आराधना, भक्ति, कभी निष्फल नहीं जाती है । प्रकृति और महादेव शंकर की अनुकम्पा से उस कन्या को सुन्दर पति की प्राप्ति होती है। ’’वाणी’’ कविराज कहते हैं कि श्रेणु जोड़ी के पति-पत्नी जीतन पर्यजन परमानन्द की अनुभूतियां करते हैं ।
वे ही नहीं उनके परिजन भी सदैव प्रसन्न हैं । यह सभी देव-वृक्ष पीपल -पूजन का सुपरिणाम है हमें किसी भी हरे-भरे पीपल को नहीं काटना चाहिए ।


Pani Pilaye Ped Ko / पानी पिलाय पेड़ को - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD05)



पानी पिलाय पेड़ को, लेओ आशिर्वाद ।
पेड़ हमारे देवता, खूब करो फरियाद ।

शब्दार्थ :- रोज = प्रतिदिन, फरियाद = निवेदन/प्रार्थना

भावार्थ:- वनस्पति भी हमारी तरह सजीव हैं । प्रमुख अन्तर यही है कि ये हमारी तरह चल-फिर नहीं सकते एवं बोल भी नहीं सकते । यदि हम इन्हें नियमित पानी पिलाते हैं तो निश्चित ही पौधे उनके अन्तर्मन से हमे शुभाशीष देतें ।
’वाणी’ कविराज कहते हैं कि हमारी भारतीय संस्कृति ने कई वृक्षों को देवहस की श्रेणी में रखें हैं ये हमें जलाने की लकड़ी ही नहीं अनेक असाध्य रोगों की अचूक औषधियां भी देते हैं । कई असंभव कार्यो को शीध्रतिशीध्र पूर्ण करने में यें बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । हमे  इनसे भी हमारे सुख-दुःख के लिए प्रार्थना करते रहना चाहिए ।



Sarswati Vandna (सरस्वती वंदना) - Paryavaran Par Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD02)



अरज शारदा से करूं, रखियो प्यारी लाज।
ऐसी यह रचना रचूं, सिद्ध होय सब काज।।

शब्दार्थ :- अरज  = प्रार्थना, रखियो = रखना, लाज = प्रतिष्ठा सिद्ध होय = कार्य पूर्ण होना, काज = कार्य

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज माता सरस्वती से करबद्ध प्रार्थना कर रहे हैं कि हे हंस वाहिनी । आप मेरी लेखनी पर इतनी सी अनुकम्पा करें कि हमारी प्रतिष्ठा बनी रहे । मैंने जो यह लेखन-कार्य प्रारंभ किया, लेखन अतिशीघ पूर्ण होवे एवं जिन उद्धेश्यों  को ध्यान रखते हुए इस कर्म का षुभारम्भ किया उन लक्ष्यों में हमें पूर्ण सफलता प्राप्त हो । यह कृति षीध्र ही जन-जन की लोकप्रिय हो जाए आपकी ऐसी ही कृपा-दृष्टि मेरी लेखनी पर हो ।


Ganesh Vandna (गणेश वंदना ) - Paryavaran Par Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD01)




पूजलूँ लंबोदर को, गाऊ गीत गणेश
दोहे सब ऐसे रचो, झुमे देश-विदेश

शब्दार्थ :- नमन करे  = पूजा = अर्चना करना

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज सबसे पहले लम्बोदर महाराज, विन्धविनासक गणपति जी के गीत गीते हुए प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! आप हमारी लेखनी को लोकप्रियता प्रदान करें। मुझ पर गणपति महाराज की ऐसी अदर्ष्य अनुकम्पा होवे  कि इस पुस्तक का लेखन कार्य शीध्र ही पूर्ण हो जाए और यह देश-विदेश में सर्वत्र अपनी आभा विखरेती हुई पर्यावरण प्रेमियों को मार्ग-दर्शन प्रदान करें ।