हम ही जिम्मेदार हैं, वन हो रहे उजाड़ ।
फसलें सब सूखी पड़ी, सूख रहे हैं बाड़ ।।
फसलें सब सूखी पड़ी, सूख रहे हैं बाड़ ।।
शब्दार्थ :- जिम्मेदार = अपना उत्तरदायित्व समझने वाले, उजाड़ = वन नष्ट होना, खेतन बाड़ = खेतों की बाड़
भावार्थ:- अहर्निष निजि चिन्तन में व्यस्त रहने वाले है मषीनी मानव । तुम्हारे उपर समाज एवं राष्ट्र की कई जिम्मेदारियां है । उन क्षेत्रों में भी पूर्ण सक्रिय रहते हुए सभी उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना समाज द्वारा अपेक्षित है । हे आधुनिक मानव ! ये उजड़े हुए वन, सूखी फसलें जलाभाव से सूखे हुए खेत, और खेतों की बाड़ सभी कुछ तुम्हारी लापरवाहियों एवं निजी स्वार्थों के ही परिणाम हैं । ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि हम सभी को जीवनभर निजी कार्यों के साथ-साथ सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं पर भी पर्याप्त ध्यान देना चाहिए ।