Dhuva Jyaada Dey / धुंआ ज्यादा देय , - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD33)



आम नीम के पेड़ जोैं, धुंआ ज्यादा देय ।
यदि मजबूरी आ गई, बबूल को ही लेय।।

शब्दार्थ:-    मजबूरी = विवशता

भावार्थ:-    वनस्पति जगत में  आम व नीम दो ऐसे पेड़ हैं जो ज्यादा धुआँ देने के कारण नेत्रों व इमारतों को ज्यादा हानि पहुंचाते है। जहां तक संभव हो हमें भोजन पकानें में इनके प्रयोग से बचना चाहिए। ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि सैसुएरिना और बबूल की लकड़ी आम व नीम के वनिस्पत कम धुंआ देती । यदि हम विवष हैं तो जलाने की लकड़ी के अन्तर्गत आम व नीम के बजाय बबूल सेसुएरिना आदि पेड़ों का उपयोग करना ज्यादा श्रेष्ठ है।