Pani Jag Ka Pran He / पानी जग का प्राण है - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD09)



पानी जग का प्राण है, वारें इस पर प्राण ।
ह्नदय पेड़ के जीतलें, वही करेंगे त्राण ।।

शब्दार्थ:- जग = संसार, वारो =न्यौछावर करना, प्राण = सम्पूर्ण जीवन, त्राण = रक्षा

भावार्थ:- पानी संसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । लाखों क्रियाएं जल की साक्षी में अथवा सहयोग से ही पूर्ण होती है । जल ही जीवन है । हमें जलसंग्रहण, जल प्रदूषण से बचाव के लिए यदि प्राणों की बाजी लगानी पड़े तो भी संकोच नहीं करना चाहिए ।
’’वाणी’’ कविराज कहते हैं कि निस्वार्थ भाव से नियमित सेवा करते हुए हम, पेड़ों का भी  ह्नदय जीत सकते हैं । वृक्ष इस जीवन के ही ........... पीढ़ियों व युगों - युगे पुराने हमारे सच्चे साथी हैं। पेड़ ही प्राणघातक असाध्य बीमारियों से औषधियों द्वारा हमारी जीवन रक्षा करते हैं । इसलिए हमें चाहिए की हम भी इनकी तन मन धन से रक्षा का दृढ़ संकल्प लेवें।