कवि अमृत वाणी





Kavi amrit wani

खुश रहे बहिनें

खुश रहे बहिनें , पल पल यही ख्याल आए |
आफ़त के वक़्त भाई बहन की ढ़ाल बन जाए ||

करता रह इस तरहां तू हिफाजत अपनी बहनों की |
कि हुमायूँ से भी बेहतर तेरी मिशाल बन जाए ||






कवि :-अमृत'वाणी'

वंदे मातरम् मिल कर गाए

आओ ऐसे दीप जलाए |
अंतर मन का तम मिट जा ||

मन निर्मल ज्यूं गंगा माता |
राम भरत ज्यूँ सारे भ्राता ||

रामायण की गाथा गाए |
भवसागर से तर तर जा ||

चोरी हिंसा हम दूर भगाए |
वंदे मातरम् मिल कर गाए ||




कवि अमृत 'वाणी'



चार दिनों की जिन्दगी

चार दिनों की जिन्दगी
यूं
गुजर गई भाई |
दो दिन
हम सो ना सके
दो दिन
नींद नहीं आई

कवि अमृत"वाणी"

एक नेता जी जमी जुमई दुकान




कवि अमृत वाणी की राजस्थानी कविता एक नेता जी जमी जुमई दुकान का कविता पाठ किशोर जी पारीक के साथ चित्तोडगढ मे

चार दिनों की जिन्दगी

चार दिनों की जिन्दगी
यूं
गुजर गई भाई |
दो दिन
हम सो ना सके
दो दिन
नींद नहीं आई

कवि अमृत"वाणी"

बुद्धि मुझे दो शारदा


बुद्धि मुझे दो शारदा, सदन शीघ्र बन जाय ।
कर पूरण स्वर-साधना, देऊ तुझे बिठाय ।।

देऊ तुझे बिठाय, विराजो मेरे घर में ।
ऐसे गीत लिखाय , हो प्रकाश अंतस में ।।

कह `वाणी` कविराज, चित्त में शुध्दी मुझे दो |
रचूं कुंडली शतक , मात सदबुद्धि मुझे दो ||

शब्दार्थ : सद्बुद्धि = श्रेष्ठ बुद्धि, सदन=भवन , नूतन = नया, अंतस में प्रकाश=आत्मज्ञान

शिल्प कला पर सो कुंडलिया
से ली गई कुंडली
कवि अमृत 'वाणी'

आज का आदमी


आज का आदमी
अपनी गरीबी के कारण
बहुत कम
और
पडोसियों की तरक्की से

बहुत
ज्यादा दुखी है

अमृत 'वाणी'

झटपट बरसादो पाणी

कवि:- अमृत'वाणी'

हुआ है श्रीगणेश

काम बड़ा ही काम का , हो गया श्रीगणेश ।
सावधानी यह रखना , नाम रहे ना शेष ।।
नाम रहे ना शेष , नहीं गिनावे दुबारा ।
पहले उनसे पूछ , कब तक रहेगा प्यारा ।
’वाणी ’ मिलते दाम , डंका बाजे नाम का
अक्षर लिखना सुंदर  , अक्षर-अक्षर काम का ।।

भावार्थः-सारे देश में जनगणना का कार्य एक साथ प्रारंभ हो चुका है । प्रशिक्षण के दौर चल रहे हैं । सभी प्रगणक, पर्यवेक्षक एवं इससे जुड़े हुए सभी कर्मचारियों के लिए यह बड़े ही गर्व और उत्साहपूर्ण कार्य है। इस कार्य में प्रारंभ से लेकर अंत तक सबसे बड़ी सावधानी यही रखनी है कि कोई भी नाम एवं मकान ना तो गिनती से वंचित रहे एवं ना भूलवश दुबारा गिन लिया जाय । वार्ता के दौरान उत्तरदाता से यह स्पष्ट रूप से पूछ लेना चाहिए कि आप इस स्थान पर कितने समय तक रहने का मानस रखते हैं, क्योंकि प्रश्न संख्या एक के अंदर ही आपको उसकी निवास की स्थिति दर्शाते हुए कोड सं 1,2,3 में से कोई भी एक कोड अवश्य देना होगा ।
अमृत ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि हे महानुभावों इस कार्य हेतु भारत सरकार द्वारा सम्मानजनक मानदेय देने के साथ-साथ आपके उत्कृष्ट कार्य की प्रशंसा करते हुए पुरुष्कृत करने का सुनियोजित प्रावधान भी है । नजरी नक्शा,मकान सूचीकरण,प्रगणक सार ,पावती रसीद इत्यादि समस्त कागजातों में आप जमा-जमा कर धीरे-धीरे सुंदर-सुंदर सुपाठ्य अक्षर लिखें यह सोच करके कि आपके हाथों से लिखा गया एक-एक अक्षर भावी राष्ट्र्ीय योजनाओं के लिए बहुत प्रभावी सिद्ध होगा ।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgAiZ7AEEpBKKnVBUKm0bl-Pnb6m6lj2nJPaqpSf7nYYhG20KGOpb20DZxD8PYZ6eEhrqzJ36Mq5lZzqRR2Y-1U2-IhLMUv16X7znescyjzY2AAjdsGXghWkM_uEdk-mrQ2pUz2obZCtEGy/(10)_thumb%5B1%5D.jpg

कवि :- अमृत'वाणी'


सुन्दर प्रगणक

सारी जनता जानती ,क्या जनगणना होय
सुन्दर प्रगणक देखके , मदद करे सब कोय ।।
मदद करे सब कोय ,पूछो काम की बातें
बता तेरा पड़ोस, मिंया बीबी की बातें ।।
'वाणी'पूरा ध्यान ,बोले कोई कुंवारी
निकले अर्थ अनेक ,पछतायगा तू भारी ।।


भावार्थः-सम्पूर्ण देश में जनगणना के प्रथम चरण का काम प्रारंभ हो चुका है इसमे कई प्रगणक महानुभाव ऐसेभी हैं जो पहली बार यह राष्ट्रीय कार्य कर रहे हैं उन्हेंवाणीकविराज कहना चाहते हैं कि आज पूरा देश इस बात कोजानता है कि जनगणना का कार्य प्रारम्भ हो चुका है और यह कितनी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है अच्छे प्रगणक एवंउनके अच्छे व्यवहार को देखकर सभी उनकी मदद करेंगे उनसे बातचीत के दौरान आप उनसे अनुसूचियों में भरनेसंबंधित आवश्यक बाते पूछें
आप उनसे उनके पड़ोस में रहने वाले दम्पत्तियों के एवं स्वयं उनके परिवार के बारे में भी कई जानकाारियां प्राप्तकर सकते हैं उत्तरदाता के रूप में कभी बुजुर्ग से कभी प्रौढ़ से तो कभी सुशिक्षित अल्हड़ कुंवारी से आपकीमुलाकात हो सकती है कुंवारियों से प्रश्नोत्तर के वक्त विशेष सावधानियां रखें क्योंकि कभी-कभी उनकी एक-एकबात के कई-कई अर्थ निकलते हैं
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYcIUemelaLnoZnOUaJ12nYHegMcwyFURIbvxUmcHMh2ZoMRfNPC25G0cHowhgdZQqonujAHGP8L9DTgQuVzf6K6Q59cNB8obKyDpcRGQEEBofeKzo2LjV8PT9F1wlErH2QLMHl0ynjYb9/s400/boduraam+interview.JPG

:- कवि अमृत'वाणी'

मायड़ भाषा


मायड़ भाषा लाड़ली, जन-जन कण्ठा हार ।
लाखां-लाखां मोल हे, गाओ मंगलाचार ।।

वो दन बेगो आवसी ,देय मानता राज ।
पल-पल गास्यां गीतड़ा,दूणा होसी काज ।।


अमृत 'वाणी'

एक्स्ट्रा क्लास


बस्ता उठा टिंकू चला , चार चोराहे पार |
थक कर जब स्कूल पहुंचा , पता लगा रविवार ||
पता लगा रविवार , नहीं बजेगा घंटा घंटी |
पड़ेगी घर पर मार  , नहीं कल की गारंटी ||
फिर चलाया दिमाग , मम्मी करनी कक्षा  पास |
जाना   हर रविवार , चलेगी अब  एक्स्ट्रा क्लास ||

आज का आदमी


आज का आदमी
अपनी गरीबी के कारण
बहुत कम
और
पडोसियों की तरक्की से

बहुत
ज्यादा दुखी है

अमृत 'वाणी'

कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।

राम चालीसा
कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।
किरपा करजो मोकळी ,रोज नमावां सीस
हुणजो माता जानकी ,दया करे रघुवीर ।
चारो  पुरसारथ मले, ओर मले मावीर ।।
शब्दार्थ -लाड़ला-परम प्रिय, केवावे-कहलाते है ,जग- संसार,मोकळी-अपार,रोज-प्रतिदिन,नमावां-नमन करते, सीस-मस्तकभावार्थः-
कौशल्या माता के अनन्य , प्रिय पुत्र प्रभु श्रीराम को यह सारा संसार जगदीश नाम से पुकारता है । अमृत ’वाणी’ कविराज कर जोड़ निवेदन करना चाहते हैं कि हे रघुकुल भूशण ! यद्यपि हम आपकी कोई अतिविशिष्ट सेवा नहीं कर पा रहे हैं तथापि हमारी यह मंगलाकांक्षा है कि हम पर आपकी अनन्त कृपा-वृश्टि होती रहे । इसके लिए हम प्रतिदिन प्रातः उठकर आपको केवल प्रणाम ही कर पा रहे हैं।
हे माता जानकी ! आप हमारी प्रार्थना सुन कर शीघ्र ही प्रभु श्रीराम तक पहुओंचावे, कि प्रभु हम पर विशिष्ट दया करते हुए सभी राम-भक्तों को चारों पुरूशार्थों--धर्म , अर्थ , कर्म , मोक्ष- की प्राप्ति एवं राम-भक्त हनुमान के चरण-कमलों की भक्ति प्रदान करें।


अमृत 'वाणी'

ram chalisa लेखकीय


संसार का दाता प्रत्येक जीवात्मा को उसके प्रारब्धानुसार कुछ ना कुछ ऐसा अवश्य देता है जो अन्य की तुलना में निसंदेह कुछ हद तक अतिविशिश्ट होता है। न जाने यह मेरे किस जन्म की भक्ति का प्रारब्ध है कि मां वीणा-पाणि ने अपने छलकते हुुए काव्य-कलश की एक नन्ही सी बून्द बचपन में ही मुझ अकिंचन चरणानुरागी की झोली में भी डालदी ।
सन् 1978 से ही लेखनी यदा-कदा नव काव्य सृजनार्थ हठीले बालक की भांति एकाएक इस तरह मचलती रही कि हर हाल में हंस की भांति चलती रही और हंसवाहिनी की विषेशानुकम्पा निष्चित गन्तव्य तक पहुंचाती रही ।
धार्मिक-कृतियों की अनवरत श्रृंखला में इस ‘रामचालीसा’ को प्रादेशिक भाशा ’राजस्थानी’ की प्रथम काव्य कृति का सौभाग्य प्राप्त हुआ । मर्यादा पुरूशोत्तम श्रीराम के समग्र व्यक्तित्व को संसार का कोई भी कवि पूर्णाभिव्यक्ति नहीं दे सकता, किन्तु यह सक्र्रिय कवि-मन कुछ सृजन किए बगैर मानता भी कहां।
अवतारी युग पुरूश श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन को हिन्दी के महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपनी विश्व विख्यात अमर कृति ‘रामचरित मानस’ में अति लोकप्रिय शैली दोहा-चौपाई छंद में अभिव्यक्ति दी । ‘राम चालीसा’ के सृजन के पूर्व ही यह विचार आ गया था कि राम के व्यक्तित्व के अधिकाधिक महत्वपूर्ण प्रसंगों को क्रमशः जोड़ते हुए एक ऐसी मनोहर काव्य श्रृंखला सृजित की जाए जो प्रातः स्मरणीय देव वन्दनाओं के संग उच्चासन पर शोभायमान हो कर कोटि-कोटि जन मानस का कल कण्ठ-हार बन सके ।
 क्लिश्ट साहित्य को समाज का केवल प्रबुद्ध वर्ग ही हृदयंगम करता आया ,किन्तु मुझे पूरा विश्वास है कि‘ राजस्थानी ’भाशा में सृजित यह ‘राम चालीसा’ सामान्य  भक्तों को निष्चय ही संक्षिप्त रामचरित मानस के रूप में अत्यन्त प्रिय लगेगी ।
  इस काव्य सृजन के लिए मुझे मणासा-रामपुरा रोड़ पर स्थित गांव हाड़ी पीपल्या वाले माताजी , पैतृक गांव छोटीसादड़ी के धर्मराजजी बावजी , भूपालसागर की सरस्वती माता , आखर गणेश , गोलाईवाले हनुमानजी हमारे वंश चंगेरिया ष्कुमावतष् के सती , पूर्वज और झुझारजी एएवं ज्ञात-अज्ञात सभी देव-शक्तियों का भरपूर आशीर्वाद मिला ।
  आभारी हूं पिता रतनलाल चंगेरिया माता सोहनदेवी जिन्होंने मुझे पाल-पोश कर बड़ा किया  इतना पढ़ाया-लिखाया कि मैं सृजन-धर्मिता के मार्ग पर भी अग्रसर हो सका । गुरूदेव श्री श्री रविशंकरजी,लालचंदजी पाटीदार,माताजी ,श्रीजगद्वदासजी , श्रीबालकदासजी गुरूभाई श्रीलक्ष्मीलाल मेनारिया ’उस्ताद ’और महावीर सक्सेना -व्ेादराजजी साहब---का आशीर्वाद और प्रेम मिला ।
  अंकलजी श्री कन्हैयालालजी भाई श्रीनंदकिशोर, श्रीसुंदरलाल, श्रीलक्ष्मीलाल, बहिन निर्मला, ललिता,पत्नी कंचन, पुत्र चंद्रशेखर , चेतन पुत्रियां यशोदा नीलम बाल-गोपाल प्रेरणा , पायल , परी , यमन , वंशराज , युवराज आदि सभी के मुस्कुराते हुए चेहरे मुझे सृजन-मार्ग पर चलते रहेने की अनवरत प्रेरणाएं देते रहेे ।
आभारी हूं गोविन्दराम शर्मा-एम0ए0 अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, चन्द्रप्रकाश द्विवेदी , श्रीसोहनलाल चौेधरी खूबचंद‘मस्ताना‘और अग्रज भा्रता के0एल0 सालवी जो विभिन्न भाशाओं एवं संगीत की विशद जानकारियां और अनुभव रखते हैं । साथियों के  संगीत शास्त्रीय मन मस्तिश्क द्वारा पूर्ण परिश्कृत यह काव्य कृति आज आपके कर-कमलों को सुवासित कर रही है । बोधगम्य प्रक्रिया में , अधिकाधिक रोचकता एवं सुगमता लाने के लिए कठिन शब्दार्थ एवं प्रसंगानुकूल चित्रों के साथ-साथ प्रत्येक चार-चार पंक्तियों के भावार्थ भी दिए हैं ।
प्रिय भक्त जनों आपके भक्तिमय अन्तर्मन के महासागर में उद्वेलित विचार तरंगों को सुनने के लिए चिर प्रतीक्षारत आपका अभिन्न अनुज।

http://aboutshiva.com/images/all_gods/Lord_Shri_Ram_Chander_Ji/Lord%20Shri%20Ram%20Chander%20Ji%2003.JPG

कवि अमृत 'वाणी'
सम्पर्क सूत्र :- +919413180558
अमृत लाल चंगेरिया (कुमावत) चित्तोडगढ

तोते



तोते
एक सुबह के भूखे तोते
शाम के सूर्यास्त को देख कर
मेरी सो साल की
भाविस्य्वानी न करो
सामने के चोराहे को देख कर
बस इतना सा बताओ
की घर लोतुन्गा
या हास्पिटल
या सीधा मगघट
वहां
एक तोता और हे
मेरे मोहल्ले में वहा बता देगा
मुझे कल का भविष्य |

बहरे कई प्रकार के



बहरे      कई   प्रकार   के,    भांत -     भांत   के लाभ |
जब तक काम पड़े  नहीं, तब तक लाभ ही लाभ ||
तब तक लाभ ही लाभ ,  चिल्ला कर वक्ता  कहे |
मन मन हँसता जाय , वक्ता का  पसीना बहे ||
कह 'वाणी' कविराज , पोस्ट   मेन  एमो लाया |
सुनी  एक आवाज ,तीन मंजिल  कूद आया ||

गुनाह


गुनाहों की दुनिया में
ह्म
हर गुनाह से बचते रहे
इसीलिए  कि हमारे
नन्हें  मासूम बच्चे हैं
मगर
बेगुनाह होना ही
कितना  बड़ा गुनाह  हो  गया
कि
आज कल गुनहगारों की बस्ती में
बेगुनाहों  के  घर
सरे आम तबाह हो रहें  |

चवन्नी और अठन्नी

आज कल


जहाँ देखो वहाँ


कई मितव्ययी दांत


पराई अठन्नी को भी


इतनी जोर से दबाते हैं


कि


बेचारी अठन्नी


दबती - दबती चवन्नी बन जाती




जब भी


वह खोटी चवन्नी निकलती


इतनी तेज गति से निकलती


कि उन कंजूस सेठों का जबड़ा ही


बाहर निकल जाता


और


इस एक ही झटके में शरीर की


नस नस की बरसों पुरानी


लचक निकल जाती


फिर


फिर तो उन्हें जाना ही पड़ता


खेतों पर पसीना बहाने


उधर जो सही समय पर
सही तरीके से


लक्ष्मी के मंत्रों का जप कर रहा होता


उसके मुंह में


चवन्नी और जबड़ा


अपने आप फिट हो जाता |






फिर, फिर तो


उसकी शक्ल पहचानने में नहीं आती


और आएगी भी कैसे


क्योंकि


मुंह उसका


जबड़ा दूसरे का


चवन्नी किसी तीसरे की |




अमृत 'वाणी'

सांप हमें क्या काटेंगे !!


सांप हमें क्या काटेंगे
हमारे जहर से
वे बेमौत  मरे जायेंगे
अगर हमको काटेंगे ?

कान खोल कर सुनलो
विषैले   सांपो
वंश समूल नष्ट  हो जायेगा
जिस दिन हम तुमको काटेंगे
क्यों

क्योंकि
हम आस्तीन के सांप हे |


अमृत 'वाणी'

अब हमको देना वोट



महंगाई की मार पड़ी , दिया कमर को तोड़ |
हो गए हम विकलांग सभी , खड़े हैं  सब हाथ जोड़ ||
खड़े हें सब हाथ जोड़ , कौन  पूंछे हाल हमारे |
साथी सब गये छोड़ , दूर बहुत हैं किनारे ||
मंत्री जी समझाए , दिया उनको तुमने वोट |
नहीं रहे कमर एसी अब  हमको देना वोट ||




हर इंसा की जिंदगी में

हर इंसा की जिंदगी में                          

कम से कम एक बार                          
एक ऐसा दौर आना चाहिए कि                          
उस दौर के दौरान वो शख्स                          
हर दौर से गुज़र जाना चाहिए |                          

अमृत 'वाणी'


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भोजन की मात्रा




भोजन की उतनी ही मात्रा अमृत के समान  है, जिसे ग्रहण करने के बाद आप को,
किसी
भी कार्य में बाधा उत्पन्न  नहीं होय |

जमी जमाई दूकान

एक नेताजी की
जमी जमाई दूकान
असी खतम होगी ,
कि
ईं चुनाव में तो
वांकी जमानत ही जप्त होगी ।

बाजार में
मारा पग पकड़
बोल्या मर्यो कविराज ,
ईं चुनाव में
मारी ईं भारी हार को
थोड़ो बताओ राज ।

में धोती उठाके
सबने वो निषान दिखायो ,
झटे नेताजी के
छ महीना पेली
एक पागल कुत्ते खायो ।

में बोल्यो
कुत्ता का काटबा से
खून में ईमानदारी बढ़गी,
ओर ईं रिएक्षन से
दूजो कुर्सी पे छडग्यो
अन कुर्सी थांका पे छडगी ।

कुत्ता का जेर से
राजनीति को
सारोई जेर कटग्यो ,
ओर यो एक ही कारण
जो
अबकी बार
थूं कुर्सी सेई हटग्यो ।

स्ुाणोजी नेताजी
राजनीति में
भारी विनाष हो जातो ,
वो कुत्तो जो पागल नी होतो
तो थांको  स्वर्गवास हो जातो ।
   
नेताजी बोल्या
थूं मारा दोष्त होयके
या बात  केवे ,
मने तो वा बात बता
के ईंज राजनीति में
पाछो कसान लेवे ।

में बोल्यो करवालो
डाकूआं का अड्डा में रिजर्वेषन ,
लगवाओ सुबह-षाम
सांप का इंजेक्षन पे इंजेक्षन ।
कुकर्म का दो केपसूल
गबन की चार गोळ्या पाओ ,
अय्यासी की हवा , दारू की दवा
या कोर्स छ महीना खाओ ।


डाकू जो मानग्या थाने
हमेषा उंची मूंछ रहेगी ,
अरे कमीषन लेबोई सीखग्या
तोई विदेषां तक  पूंछ रहेगी  ।

परदादा के दादा को
यो जूनो कोट भी उठै धूलेगो ,
थू सब जाणेगो ,
पण जाण के भी सब भूलेेगो ।  

थू नटतो-नटता खावेगो
ओर खाके झट नट जावेगो ,
पण याद राखजे
थे छीप के कटे बीड़ी भी पी
तो धूंओ अठै  आवेगो।


रचनाकारःअमृत‘वाणी‘






धोळा में धूळो

धोळा,कुदरती हाथां उं दियो थको वो सर्टिफिकेट हे जिने ईं दुनियां को कोई भी मनक राजी मन उं कदै लेबो न छावे ,पण जीमणा में खास ब्याईजी-ब्याणजी की खास मनवार के न्यान सबने न-न करर्ता इंने हंसतो-हंसतो लेणाईज पड़े।
भारतीय समाज की कतरी पीढ़ियां निकळगी होचबा को तरीको हाल तक स्कूल ड्र्ेस के न्यान सबको एक जसोई हे । जसान
कोई मनक के धोळा आबो चालू व्या ईंको मोटो मेतलब यो हे के अबे वो दन-दन हमझदारवे तो जार्यो । धोळो माथो मनका के ज्ञानी कम ओर अनुभवी ज्यादा वेबा को संकेत देतो
रेवे ।
धोळा माथा पे नवी धोळी पाग वेवे या धोळो साफो वेवे ये अणी बात को साफ संकेत देवे कि यांका घर में जो उमर में बड़ा और बड़ा ज्ञानी जो भी हा वे थोड़ाक दन पेलयांई’ज ठेठ उूपरे जाता र्या अन् अबे वीं घर मंे हमझदार की पूंचड़ी का यै’ज र्या ।
नरी जगा में देक्यो के धोळा माथा ने देक-देक घणा मनक राजी वेवे ,अन वे धोळाबा खूद में का में छीजता रेवे । चटोकड़्या छोरा-छोरी तो अणी वास्ते राजी वेवे के नामेक दन केड़े ये बासा के तो स्वर्ग में जाय अन के नरक में जाय ये कटेे भी जाय पण आगो बळो आपाने तो जिमान जाय । नराई नवरा ईं बाते राजी वेवे के अबे थोड़ाक दन में जीमणो वेवा मै’ज हे , अन बासा ईं बास्ते छीजे के पैसा तो हगराई बडं़गे लाग ग्या अबे जीमणो कुंकर वेई । ईं चिंताई चिंताई में कतराई डोकरा हन्नीपात में आजावे । आजकाल असान का मामला नामिक कम पड़्या कां के सरकार कर्यावर बंद करा काड़्या ।

यू ंतो धूलो नराई रंग को वेवे पण सबको असर एक हरिको को’ईज वेवे । जाणे कसा भी रंग को धूळो कसी भी आंख में पड़ जावे तो आंख्या पगईं राती छट वे जावे अन दुधारु ढांडा के न्यान मनक गांवा-गांवा अदभण्या डाक्टर साहब नै हमारता फरे ।
धूळा को सभाव दो त्र्या को वे -कदीक तो यो खूद’ई नवा-नवा पामणा के न्यान बनाई हमच्यार दीदे रूपाळी-रूपाळी आंख्या में जा पड़े, कदीक यो नवी-नवी कळा लगावे । मनकां की कोटेम ने पेल्यां तो आंख्या टमकार’ने ईषारो करदे पचे कोटेम वींकी टेम देकने सब हूत हावेल मलान आंख्या मींच दोड़ता थका के असी तरकीब उं लंग्या नाके के वो चष्मा हमेत धूळा भेळो वेजावे । धूळोतो कदकोई वींकी वाट नाळर्यो । अगर वो नेम धूळा भेळो न व्यो तो या वात ते हे वो मनक सेल्फ स्टार्ट इंजन के न्यान थोड़ीक देर केड़ेई पाचो उठ’न चालबा लाग जई । देकबा वाळा हॅंसता जई’न केता जई । रो मत , रो मत देक-देक वा कीड़ी मरगी , देक या कीड़ी मरगी । यूं के-के उं बिचारा ने ठोकर परवाणे ढंग-ढांग उं रोबा भी न देवे । कदी-कदी असो वे जावे वो धूळा में पड़्यो-पड़्यो भंगार फटफट्या का साईलेंसर के न्यान बा’रा मेले , राग-राग में गीत गावे । मदारी का खेल के न्यान चारू मेर मनक भेळा वेजावे । थोड़ो वो झाटके, थोड़ो वाने झाटके ,कोई मरहम पटृी करे , कोई दवा-दारू लावे , कोई राड़ लगवावे कोई प्लास्टर छड़वावे कोई प्लास्टर कटवावे कोई कपड़ा बदले , कोई नंबर बदलवान नवो चष्मो लावे । असान दो-चार जणा घरका अन दो-चार जणा बा’ला मल’न पाचो वीने चालबा जोगो कर काड़े ।
धूूळा की एक घणी खोटी आदत देकी जिंदगी में कोई भी एक दान जो धूळा भेळो वेग्यो पचे आकी उमर वो वींका कपड़ा बड़िया उं बड़िया हाबू डिटर्जेण्ट लगा-लगा न धोतो रेवे पली अंतर की षीषियां में झंकोळ-झंकोळ अन पेरे तो धूळा को रंग पूरो कदी न उतरे कोने । अणी वास्ते हमझदारी ईंमै’ज हे कि अतरा ध्यान उं चालनो छावे कि न तो धूळो आपणी आंख्या में पड़े न आपा धूळा में पड़ा धूळो वटे को वटे’ज अन आपां आपणे ठाणे पूगा ।
धूळो आंख्या में पड़े या कोई खूद धूळा में जा पड़े यां दोयां बचे ज्यादा खराब हालत वीं दान वे जावे जद धोळा में धूळो पड़ जावे । मनक केता रेवे आछा धोळा में धूळो पटक्यो । कोई केवे आछो जनम्यो रे पूत बाप-दादा को नाम धूळा में मलायो ।
अतरी लांबी-चोड़ी वातां में सार की वात या अतरीक हे कि आंख में धूळो पड़जावे तो पाणी की कटोरी मं आंख्या खोलबाउं ठीक वेजावे , कोई खूदई’ज धूळा में पड़ जावे तो कपड़ा झाटक्या अन पाचा चालता वणो । पण धोळा में धूळो पड़ जावे नी तो वो आदमी नेम मर्या बराबर वे जावे । माजणा वाळा ने तो नवो जमारोई’ज लेणो पड़े । अणी वास्ते जीवो जतरे ध्यान राकजो आंख्या में धूळो पड़जा कै वात नी , आपा धूळा में जा पड़ा कै वात नी , माथा पे धोळा आजावे कै वात नी पण ईं वात को सबने पूरो ध्यान राकणो के कदी धोळा में धूळो नी पड़ जावे ।

रचनाकार - अमृत ‘वाणी’ चित्तौड़गढ़ राज0

सबसे बड़ा दुःख

आता है

अचानक दौड़ता हुआ

सबसे बड़ा दुःख
जो कुछ ही समय में
एक ही सवाल से
सबका इम्तिहान लेकर
चला जाता है
आहिस्ता-आहिस्ता

जिन्दगी की
छोटी सी किताब में
अपने ही हाथों से
वो एक नया पाठ
लिख कर जाता है

जिसमें

बिना किसी पक्षपात के
साफ-साफ
कई नाम लिखे होते हैं
जैसे
कौन-कौन तेरे लिए
तन-मन-धन दे सकते
कौन-कौन
तन-मन दे सकते
कौन-कौन
केवल मन दे सकते
कौन-कौन
केवल तन दे सकते


कौन-कौन
तेरे इ्रर्द-गिर्द
घूमने वाले ऐसे हैं
तेरे वास्ते
जिनके पास
ना वो है
ना उनकी दुआएं
ना दो पैसे हैं ।

बार-बार
वही पाठ पढ़ कर
बार-बार
सही सही समझ कर
सारे पुराने फैंसलेे
तुम्ही को बदलने
सही वक्त आने पर

कि
अब
किस-किस को
केवल जल पिलाना है
किस-किस को
जल और जल-पान कराना है
किस-किस को
जल,जल-पान
और भोजन कराना है ।

किस-किस को तो
आप जीवित हैं
इतना भी नहीं बताना है

कुछ तो ऐसे भी हैं
अगर उनको
तेरी मौत की खबर भी मिल गई
वे दौड़े आएंगे
तेरी मौत पर
जलेबियां बांट कर
और जाएंगे
तेरे
मृत्यु-भोज के लड्डू खाकर ।

आतंकी घाटियां

आतंकी घाटियॉं
और रेगिस्तान
इन दोनों में
केवल
दो ही अंतर खास है ।

पहला अंतर
रेगिस्तान में
पानी
खून की तरहां बहता है
और आतंकी घाटियों में
खून
पानी की तरहां बहता है ।।

दूसरा अंतर
रेगिस्तान में
आदमी की मौत के लिए
यह बहुत जरूरी
कि
वह दिखने में गुनहगार हो
किन्तु
आतंकी घाटियों में
आदमी की मौत के लिए
बस
इतना ही पर्याप्त है
कि
वह दिखने में आदमी हो ।

वें हजारों बार जीए


शहरों में कई लोग
इसलिए मर रहें
कि
उन्हें जीना नहीं आया
और कई लोग
महज
इसीलिए जी रहें कि
उन्हें मौत नहीं आ रही ।

बचे हुए लोग
रो रहे
कुछ उनके वास्ते
जो बेमौत मर गए
कुछ उनके वास्ते
जो
न जाने कब मरेंगे ।

चंद भले लोग
चंद भले लोगों के लिए
रोज
दुआएं कर रहे हैं
हे प्रभु !
वें हजारों साल जीएं
हे प्रभु !
वे हजारों बार जीएं ।।

धोती-जब्बा पगड़ी

धोती-जब्बा-पगड़ी
माथे पर तिलक और चोटी
गले में माला
राम-नाम का दुषाला
गायों को चराने के लिए
लूटेरों को डराने के लिए
हाथ में लठ

यह सब कुछ देख
विगत कुछ वर्शों से
षहरों के कई लोग
मुझे इस तरहां देखते
जैसे
मैं उनकी टी टेबल पर पड़ा हूँ
कल का उपेक्षित अखबार

वे हॅसते हुए देख रहे हैं
आज के अखबार को
जो
सर्कस के जोकर की तरहां सत्य है ।

आम आदमी का कार्टून
जो छपा है
कुछ इस तरहां
जो अपने ही घर में लूट गऐ

लूटेरे ने पहनी है
कोट और पतलून
क्या कलर मेचिंग मिलाया
काला सिर
काली टोपी
काली रात
दिखा रहा
एक-एक को पिस्तौल
अपनी जिन्दगी चाहते हो
तो तुरंत देदो

कुछ दे रहे
बिना गिने
वे
पुराने असली सिक्के
जो तुलसी विवाह,कन्यादान
मंदिर का उद्घाटन
कोर्ट-कचहरी
ईलाज और लाईलाज बीमारी
मृत्यु-भोज और ब्रह्म-भोज
किसी में भी
अब तक नहीं निकले

और कुछ
हाथ जोड़ कर निकाल रहे
इतने शुद्ध आंसू
जो उनकी
मां की मौत पर भी
नहीं निकले ।