ag mein jeevan neer hai / जग में जीवन नीर है - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD112)


जग में जीवन नीर है, सुन जग जीवनराम।
राम-राम तुम फिर करो, पहले नल का काम।।

शब्दार्थ :- नीर = पानी

भावार्थ:- पृथ्वी पर 3/4 भाग पानी होना ही इस बात का प्रमाण है कि जल ही इस संसार का प्रमुख आधार है । आवश्यकतानुसार सुनियोजित ढंग से ही पानी का उपयोग किया जाना चाहिए । हे जगजीवनराम, तुम इन बातों को बड़े ही ध्यान से सुनते हुए जीवन में उतारलो । ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि भक्तिभाव मे राम राम का स्वमरण भी तुम थोड़ी देर बाद कर लेना यदि उस वक्त नल में पानी आ गया और पानी व्यर्थ बह रहा है तो पहले उस नल को बन्द करें भरे जल पात्र भीतर लाकर खाली करके रखते हुए तुम कुन्त भक्ति करने बैठ जाओं । राम-राम करते हुए पुण्य लाभ के प्रभाव से नल भी अवष्य ज्यादा आऐगें ।




Rojgaar sabko mile / रोजगार सबको मिले - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD111)

जनसंख्या जब कम रहे, अच्छे होय विकास।
रोजगार सबको मिले, सुन्दर हो आवास ।।

शब्दार्थ :- रोजगार =जीविकोपार्जन हेतु आय के स्त्रोत, निवास = रहने हेतु मकान

भावार्थ:- देश  के चहुमुंखी विकास में जनसंख्या का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। यदि आबादी कम होगी या बहुत ही कम गति से बढ़ेगी तो सभी को पर्याप्त सुख-सुविधाएं उपलब्ध हो सकेगी । आशा के अनुरूप देश का विकास होना संभव होगा । सभी को अपनी-अपनी योग्यता, क्षमता व अनुभवानुसार रोजगार भी उपलब्ध हो सकेेंगे । देश में सर्वत्र खुशहाली रहेगी। ’वाणी’ कविराज यह कहना चाहते हैं कि जनसंख्या विस्फोट भारत वर्ष की ज्वलंत समस्या हैं। इस पर शीध्र ही विचार-विमर्ष करते हुए स्वनिय निर्णय की प्रवृत्ति विकसित करना अतिआवश्यक  है।




Kar Sabaka Sammaan / कर सबका सम्मान - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD110)

पार नही है ज्ञान का, कभी न कर अभिमान।
नया-नया रोज़ पढ़ना, कर सबका सम्मान।।

शब्दार्थ :- बढ़ते रहो = बौद्धिक विकास करना,

भावार्थ:- संसार में कई प्रकार के विषय है । ज्ञान-वृक्ष की क्रोटि कोटि ष्षाखाएं है एक-एक डाली पर अनन्त पत्ते है ऐसी अन्नत जालियां है सामान्य व्यक्ति जीवनी में उस वट वृक्ष की एक शाखा का भी किंचित ज्ञान ही प्राप्त कर सकता है । इसलिए किसी भी विद्वान को अपने ज्ञान व अनुभव पर अभिमान कदापि नहीं करना चाहिए । ’वाणी’ कविराज कहते है। कि स्वाध्याय द्वारा प्रतिदिन अध्ययन करते रहना चाहिए । ज्ञान के साथ-साथ यदि विनम्रता भी जीवन में आ जाती है । तो वह व्यक्तित्व अवश्य ही चिरस्मरणीय बन जाता है। विद्धान व अनुभवी व्यक्तियों को चाहिए कि वे अपने ज्ञान को सुपात्रों में अनवरण बांटते रहें ।






Janavaron Ko Palate / जानवरों को पालते - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD109)


जानवरों को पालते, सुनो बाल गोपाल।
प्रशिक्षण में सब सीखलो, लो संग ग्वाल-बाल।।

शब्दार्थ :- गोपाल = गायों को पालने वाले, ग्वाल-बाल = पशु  पालकों की दिन भर साथ रहने वाली मित्र-मण्डली

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि हे पषुपालकों हे गोपालों । तुम सब हमारी एक बात सदैव ही याद रखों कि यदि आप पशुपालन से संबंधित कोई प्रशिक्षण प्राप्त कर लेते हैं तो यह आपके व्यावहारिक एंव सैद्धान्तिक ज्ञान को अवष्य बढाएगा । जानवरों के सामान्य आहार, रोग, निदान संबंधी पर्याप्त जानकारियां आपको प्रशिसण द्वारा हासिल हो जाएगी। इससें आप काफी सुविधा अनुभव करंगे । अपने साथियों को भी अपपने ज्ञान से लाभन्वित कर सकेगें। कई दृष्टिकोणों से उपयोगी यह प्रशिक्षण सभी पशु पालकों को प्राप्त करने का अवसर मिलना अपेक्षित है।






Jangal Me Mangal Rahe /जंगल में मंगल रहे - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD108)

मानवीय शिक्षा मिले, सारे करें प्रयास।
जंगल भी मंगल बने, ऐसा होय विकास।।

शब्दार्थ :- जंगल में मंगल = अतिसाधारण परिस्थितियों में भी अच्छा जीवन बिताना ।

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि सभी व्यक्तियों को मानवीय षिक्षा एवं जीवन के अनुभवों को आत्मसात करने के पर्याप्त अवसर मिलते रहने चाहिए। कम से कम वह इतना सीख ले कि यह मनुष्य जीवन क्या है ? इस जीवन में कौन से कार्य अधिक करने चाहिए और कौन से कार्य नहीं करने चाहिए । इतना प्रयास हर प्रशासन व हर नागरिक को करना चाहिए। ऐसे ज्ञानार्जन के पष्चात् ही हम ईष्वार प्रस्त साधारण सी सुख सुविधाओं में भी श्रेष्ठ जीवन व्यतीत कर सकेंगें। सभी के विकास की मंगल भावनाओं को लेकर कदम से कदम मिलाकर चलने का हाथ, से हाथ मिला कर साथ चलने के फायदां को आम आदमी समझ सकेगें, ऐसी व्यवस्थाऐं सर्वत्र उपलब्ध कराई जानी अपेक्षित हैं।






Dhara Chabbis Lagti /धारा छब्बीस लगती - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD107)

धारा छब्बीस लगती, सजा नब्बे दिन पाय।
जुर्माना है पांच सौ, सुधर-सुधर सब आय।।

शब्दार्थ :- जुर्माना = आर्थिक दण्ड

भावार्थ:- पशुओं  पर क्रूरता संबंधित अधिनियम के अन्तर्गत ही धारा 26 के अनुसार कोई निर्दयी व्यक्ति धारा 22 के अन्तर्गत यदि पषुओं द्वारा प्रदर्शन  (खेल) करता है उसके करतेव्यों से लोगों का मनोरंजन करता है तो इसे भी अपराध की श्रेणी में मानते हुए 500 रू. तक आर्थिक दण्ड या तीन माह की जेल की सजा दिए जाने का प्रावधान हैं। ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए उसे दोनों ही प्रकार के दण्ड दिए जा सकते हैं। जब ऐसे निर्दयी व्यक्ति जेल की सजा भुगतेंगे तो अवष्य ही उनकी बेरहमी में अर्थात् उनकी निर्दयता में काफी कमी आएगी ।





Pashu Krrurta Na Hoi /पशु क्रुरता न होय - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD106)


नियम साठ में यूँ कहा, पशु  क्रुरता न होय।
धारा ग्यारह देखले, जेल-जेल तू रोय।।

शब्दार्थ :- पशु क्रुरता = पशुओं के प्रति निर्दयता पूर्वक व्यवहार करना

भावार्थ:- सन् 1960 में पशु  कू्ररता निरोधक अधिनियम पारित किया गया। उसका उद्देष्य यह था कि पषूओं को दी जाने वाली अनावश्यक पीड़ा को रोका जा सके। दूसरे अधिनियम की धारा 11 के अन्तर्गत दर्शाया गया है कि यदि कोई व्यक्ति पशुओं पर अत्याचार करना है तो इसे अपराध की श्रेणी में मानते हुए उस पर अर्थिक या उसे जेल या दोनो ही प्रकार की सजाएं मिल सकती हैं ।






Daya Kar Bejuban Par / दया कर बेजुबान पे - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD105)


दया कर बेजुबान पे, सब कहें दयावान।
तुम पर भी करने दया, दोडेंगे भगवान।।

शब्दार्थ :- बेजुबान = वे प्राणी जी अपनी जिव्हा से बोल नही सकते, दयावान = जिनके हदय में दूसरो के प्रति बहुत दया हो।

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि हम अक्सर अपने भाई बहिन, परिजन ग्रामवासी इत्यादि जिन-जिन पर भी दया करते है, उन दयाओं के साथ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हमारा छोटा-बड़ा स्वार्थ जुड़ा होता है। उस स्वार्थ पूर्ति की आषा से बनावटी दया की जाती है। वास्तव में यह दया नहीं, दया की मजाक है। सच्ची दया तो वही है कि हम प्राणी मात्र पर दया करें, चाहे वह मनुष्य,पशुपक्षी, वनस्पति ही क्यों ना हो। सभी पर दया करने वाले को ही सच्चा दयावान कहा जाता है । यदि अन्र्तमन से प्राणीमात्र को आप अपना समझने लग गए तो उसका परिवार बहुत विशाल हो जाएगा। आप पर भी दया करने दयानिधि दौड़ते हुए स्वयं आपके द्वार पर आ पहुॅचेंगे ।




BuchadKhane Band Ho / बूचड़खाने बन्द हों - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD104)


बूचड़खाने बन्द हों, जन-मन करे पुकार।
सबको इस संसार में, जीने का अधिकार ।।

शब्दार्थ :- बूचड़खाने = जहां मांसाहार हेतु पषुओं को काटा जाता हैं, जन = व्यक्ति पुकार = अन्तर्मन की आवाज

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि जहां-जहां भी बूचड़खाने है वहां मांसाहार प्राप्ति हेतु लाखों निर्दोश मूक पशूओं को काटा जाता है तुरंत उन्हें बन्द किए जाने चाहिए । यही जन-जन की पुकार है । परमात्मा के बनाए गए इस विचित्र संसार में सभी प्राणियों को जीने का पूर्ण अधिकार है। उनकी निर्धारित आयु सीमा से पूर्ण उन्हें क्यों मारा जायं । यही उनके प्रति सच्चा न्याय होगा।







Pashu Ke Bhi Jiv Hai / पशु के भी जीव है - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD103)


रोज रखें यह ध्यान सब, है पशु के भी जीव ।
अधिक वनज जब दिया रख, निकल जायगा जीव।

शब्दार्थ :- जीव = जीवात्मा, वजन = भार,

भावार्थ:- इतना सा ध्यान तो हम सबको रखना चाहिए कि हमें हमाराा जीव जितना प्रिय है ठीक वैसे ही पषुओं को भी उनका जीव उतना ही प्रिय होता है । ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि भार वहन करते समय इस बात का पूर्ण ध्यान रखें कि उन पशुओं पर उनकी क्षमता के अनुरूप ही भार डालना चाहिए। यदि लम्बे समय तक लोभवंश इसके प्रति लापरवाही बरती गई तो आपको पशुधन के संबंध में विभिन्न प्रकार की हानियां उठानी पड सकती हैं।





Begunah Pashu Kat te / बेगुनाह पशु काटते - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD102)

बेगुनाह पशु काटते, बोले ना कुछ बोल।
आखरी फरियाद यही, खोल सके तो खोल।

शब्दार्थ :- बेगुनाह = निर्दोश, फरियाद = प्रार्थना, खोल = जीवनदान देना ।

भावार्थ:- मांसाहार के दृष्टिकोण से हजारो पीढ़ीयों से पशुओं की जीव हत्याएं होती आई हैं। यदि एक न्यायाधीश के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यही तथ्य सामने आता है कि इन जानवरों का दोष यही है कि ये निर्दोश हैं । इतना ही नहीं पशु इतने बेबस और लाचार हैं कि वे अपनी बात अपने दुःख को कह भी नहीं केवल आंसू बहाते हैं ।
’वाणी’ कविराज कहते है कि इतना सब कुछ होने के बावजुद भी वे सब एक निवेदन तो अवश्य करते ही हैं कि हे षेरों की संतानों वीर बहादुरों सुनो यदि मिें खेल सकते हो तो खेल कर हमें जीवनदान देओं ।





यदि चल-हाॅस्पीटल चलें, करने पशु उपचार ।
रोग-मुक्त पशुधन रहे, करलो जल्दी विचार।।

शब्दार्थ :- चल हाॅस्पीटल = वह हाॅस्पीटल जो रोगियों के पास चल कर जावे

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि ऐसे चल हाॅस्पीटल भी होने चाहिए जो गांव-गांव,शहर-शहर में जाकर रोगियों का उपचार करें ।........ जिस प्रकार मनुष्य अपने बारे में सोचता रहता है कि उसको किसी प्रकार का रोग नहीं सौ वषो तक वह सानन्द जीए निरोग रहने के लिए वह न केवल सोचता बल्कि सतत् प्रयत्नशील भी रहता है।
अनवरत चलने वाले इस स्वचिन्तन से बाहर निकल क रवह पशुओं के लिए भी कुछ सोचे कि किस प्रकार उनके उपचार की व्यवस्थाओं में आसानी से सुधार लाया जा सकता है। इन तथ्यों पर भी विद्वजनों पर्याप्त विचार-विमर्श होना परमावश्यक  है।

T.V. Moter Car / टी.वी. मोटर कार - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD100)


आवाज बहुत बढ़  रही, टी.वी. मोटर कार ।
कर जोड़ निवेदन करो, आप हैं समझदार।।

शब्दार्थ :- करजोड़ = हाथ जोड़ कर/ नम्र निवेदन

भावार्थ:- यदि आपके पास-पड़ोस में ही कई सज्जन बहुत ही तेज आवाज में रेड़ियो-टी.वी. माईक बजाते हैं । कारे, मोटर, कुछ भी तेजी से आवाज कराते हुए वाहन चलाते हैं तब भी आपको एकाएक उनसे वाकृ युद्ध प्रारंभ नहीं कर देना चाहिए । पहले आप उन्हें मीठी में समझाइए कि भाई साहब आपको क्या कहें आप तो इस नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति है। आप तो सर्वाधिक समझदार है, हमें ऐसा कहने की जरूरत ही नहीं पड़नी चाहिए थी। खैर कोई बात नहीं जी भूल हो गई होगी । कृपया टी.वी. की इस कर्ण मेडी विस्फोटक ध्वनि को कम करने का कष्ट करें । इस प्रकार निवेदन करने पर 99 प्रतिशत पड़ौसी तो मान जाया करते है। और यदि इसके बावजूद भी नहीं मानते हैं तो फिर आपको अपने इस सामूहिक पर्यावणीय, संकट निवारण के लिए कानून की सहायता लेनी चाहिए किन्तु यथा संभव ऐसे सार्वजनिक कार्य मे व्यक्तिगत  विवाद आधार नहीं हो ऐसा प्रयास करें।




Agar Vaha Podhe Lage / अगर वहां पौधे लगे - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD99)



ध्वनि प्रदूषण कर रहा, जब सबको कमजोर।
अगर वहां पौधे लगे, सोंख लेय सब षोर।।

शब्दार्थ :- सोखेेंगे = पौधों द्वारा ध्वनि तरंगो को अपने में समाहित कर लेना,

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि यदि आपके चारों और बहुत ही अधिक शोर-शराबा होता रहता है और आप विवष हैं, तब ऐसा करना चाहिए कि अपने भवन के आस-पास कई प्रकार के फलदार पौधें लगा कर ध्वनि-प्रदूषण को कम कर सकते हैं । पौधें घरों में होने वाले शोर-शराबे को सोख लेते है। पौधों से फल-फूल-पत्तियां आदि लाभों के अतिरिक्त ध्वनि-प्रदूषण नियंत्रण एक विचित्र अदृष्य सेवा हैं। ऐसी अदभुद सेवाओं के लिए हम पेड़-पौधों के आदिकाल से ही सदैव ऋणी रहें हैं।










Aavaaj Aay Jor Ki / आवाज आय जोर की - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD98)

VV


आवाज आय जोर की, उच्चे भवन गिराय।
थर-थर बंगले कांपते, दरारें बढ़ती जाय।।

शब्दार्थ :- दरार = भवन की दीवारों में तरेड़ (क्रेक) आ जाना

भावार्थ:- ध्वनि के भीतर सर्व विनाशक शक्ति भी छीपी हुई है । वर्षाकाल में जब आकाश में तीव्रतम मेघ-गर्जन होता है। आकाश में कई मिलों तक बिजली चमकती हुई दिखाई देती है ऐसे समय में जहां-जहां बिजली गिरती वहां भारी जन-धन की हानि की संभावनाएं रहती हैं कमजोर भवनों में लंबी-लंबी दरारें पड़ जाती है। कभी-कभी कई जानवर व व्यक्ति भी एक साथ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। हम उन मेघ-गर्जन की ध्वनि को तो रोक नहीं सकते किन्तु यह अवश्य कर सकते हैं कि नए बनने वाले मकानों में चूना, सीमेन्ट, इत्यादि सामग्री अच्छी क्वालिटी की जगावे । जो-जो भवन स्वतः गिरने की स्थिति में हैं वहां निवास नहीं करें । बड़ी-बड़ी इमारतों में तांबे की छड़ लगाकर अर्थिग करने से भवन की सुरक्षा बढ़ती है।




Layud Speaker Kam Kro / लाउड स्पीकर कम करो - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD97)


टेंशन आय दिमाक में, घटता है अनुराग।
लाउड स्पीकर कम करो, सुनना मीठी राग।।

शब्दार्थ :- टेंशन = मानसिक तनाव, बेराग = वैराग्य/सांसार से विरक्ति, मीठी राग = धीमी गति से कोई गीत सुनना

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि लम्बे समय तक तेज ध्वनि सुनने से न केवल कान खराब होते बल्कि स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना, अनिद्रा, स्मृतिदोश उत्पन्न होना दैनिक कार्यो के प्रति अरूचि और कच्चा बैराग्य उत्पन्न होना आदि, कई प्रकार के दोश प्रकट होते हैं। इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए प्रारंभ से ही सावधानी रखनी चाहिए। लाउड स्पीकरों की ध्वनि कम रखें । वे गीत-गजल आपको कितने ही प्रिय हों लेकिन धीमी आवाज में सुनना सभी के लिए हितकर है।





Bahre Lakho Kaan / बहरे लाखों कान - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD96)




फिफ्टी- फिफ्टी हो गए, बहरे लाखों कान ।
अब धीरे बोले नहीं, गई निराली शान।।

शब्दार्थ :- फिफ्टी- फिफ्टी = लगभग आधे-आधे, जाय निराली षान = कानों के सुनने की स्वभाविक प्रवृति

भावार्थ:- महानगरों की स्थिति ध्वनि-प्रदूषण के कारण सर्वाधिक चिन्ताजनक बन चुकी हैं। हजारों व्यक्ति ऐसे मिल जाएंगे जो लगभग आधे बहरे हो चुके हैं । ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि अब भी स्थिति पूर्णतः अनियंत्रित नहीं हुई है। यदि सभी प्रयास करें तो इसमें काफी हद तक सफलता प्राप्त की जा सकती है। यदि इस और कुछ भी ध्यान नहीं दिया गया तो एक दिन स्थिति ऐसी आ जावेगी कि तीव्र ध्वनि प्रदूषित क्षैत्रो में अधिकांष लोग बहरे हो जाएंगें जिससे उनकी संतानो के मित्रों,परिजनों व संग संबंधियों कमी के लिए नई परेशानियां उत्पन्न करेगी ।







Mike Jab Vivah Ke / माईक जब विवाह के - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD95)



माईक जब विवाह के, फाड़े प्यारे कान।
हाथ लगा कह राम को, कान बचा भगवान।।

शब्दार्थ :- माईक = ध्वनि विस्तारक यंत्र,

भावार्थ:- विवाहोत्सव परिसर में माइक द्वारा गूंजने वाली ध्वनि बिजली की ध्वनि, जेट विमानों के उड़ान के वक्त आने वाली ध्वनि, रेल्वे स्टेशन पर रेलगाड़ियों आदि से उत्पन्न होने वाली कर्णभेदी ध्वनि ये ध्वनियां 100 डेसिबल से भी अधिक होती हैं। ये सभी धमियां समान श्रेणी में  आती हैं । जब-जब हम अपने कानों पर दोनों हाथ रख कर यह प्रार्थना करते हैं कि हें प्रभु ! अब तो बस आप ही हमारे कानों की रक्षा कर सकते हैं। ऐसी तीव्रतम ध्वनियां स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक हानिकारक होती हैं। हमें उनसे बचने का सदैव अच्छा प्रयास करना चाहिए।




0:02 / 3:58 Shor Sharaba Yu Bada / शोर शराबा यूँ बढा - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD94)



शोर-शराबा यूँ  बढा, पी-पी मोटर आय।
अस्सी डेसिबल पहुँचे, सिर फटने लग जाय ।।

शब्दार्थ :-  शोर शराबा  = अप्रिय ध्वनि,

भावार्थ:- जब ध्वनि की तीव्रता 61 से 99 डेसिबल तक पहुंच जाती है तब वह आवाज हमें अप्रिय सी लगने लगती है। ट्रक मोटर, ऑटो रिक्षा, मोटर साईकिल आदि के तेज हाॅर्न से उत्पन्न होने वाली ध्वनि निष्चित ही स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि इस ध्वनि से सिर दुखना तनाव (टेंशन) उत्पन्न होना, भय, घबराहट आदि अनुभव होते हैं। ऐसी स्थिति में पांच-सात व्यक्तियों का समूह बनाकर उन यंत्रों के संचालकों से पहले नम्र निवेदन करना चाहिए ।





साठ डेसिबल तक लगे, प्यारी सी आवाज।
रिमझिम पानी बरसता, बजते जैसे साज।।

शब्दार्थ :- डेसिबल = ध्वनि का मात्रक, साज = वाद्य यंत्र

भावार्थ:- ध्वनि की तीव्रता को मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया गया है। सर्वप्रथम सामान्य स्तर की ध्वनि की हम चर्चा करते हैं। जो ध्वनि 60 डेसिबल तक होती है। वह कर्णप्रिया होती है। इसके अन्तर्गत रिमझिम-रिमझिम पानी बरसना, दीवार घड़ी की टन-टन की ध्वनि सुनाई देना, दो-चार मित्रों द्वारा पास बैठ कर आपस में मधुर वार्तालाप करना ऐसी कई ध्वनियां इसके अन्तर्गत आती हैं । इस ध्वनि की तुलना कविराज संगीत के वाद्य यंत्रों से करते हैं ।

Dhanwi Prdushion Bad / ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD92)




ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा, यूं लगता अनुमान ।
पैसे जिनसे मांगते, सुने नहीं श्रीमान।।

शब्दार्थ :- ध्वनि प्रदूषण = वातावरण में अनावश्यक आवाजों की बढ़ना ।

भावार्थ:- विभिन्न प्रकार के स्वचलित यंत्र मोटर साईकिल, टेम्पू टेक्सी, ट्रक, फैक्ट्री, कल-कारखानों, रेडियो, माईक, टी.वी., टेप इत्यादि आधुनिक यंत्रो से आवाजें इतनी बढ़ गई कि कई व्यक्ति आंशिक रूप से बहरे व तनावग्रस्त हो गए।
’वाणी’ कविराज कहते हैं कि इस बात हा सहज अनुमान मात्र इस छोटी सी बात से लगा सकतों हैं कि जिस व्यक्ति विषेष से हम हमारे पैसे मांगते लेकिन वे हमारी बात को बार-बार दोहराने पर भी जोर-जोर से लिला से कर कहने पर नहीं सुनते हैं।




Kechua Sache Meet / केचुएं सच्चे मीत - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD91)



केचुएं सच्चे मीत है, जान सको तो जान।
ये मिट्टी के काम में, झोंके अपनी जान।।

शब्दार्थ :- जान = प्राण/समझना, धान = अनाज/पैदावार

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज यह कहतें है कि केचुएं खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं मिट्टी जितनी उपजाऊ होगी उतना ही उत्पादन बढ़ेगा। इस बात को यदि तुम समझना चाहते हो तो अभी समय हैं किसी से भी समझलो कृषि कार्य हेतु ऐसी कुछ विशेष बातों को जो-जो किसान भाई ध्यान रखेंगे वे अवष्य ही अपने खेतों से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकेंगे ।




Taknik Viksit kare / तकनीक विकसित करें - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD90)




तकनीकी विकसित करें, व्यर्थ न्यूनतम जाय।
उत्पादन बढ़ते रहें, बढ़ती जावे आय।।

शब्दार्थ :- तकनीकी = विधियां/तरीके, न्यूनतम = कम से कम

भावार्थ:- ऐसी-ऐसी नई औद्योगिक तकनीकियों का आविष्कार होना चाहिए। कि उनके द्वारा उत्पादन कार्यो में अवषिष्ट पदार्थ (वेस्ट मटेरियल) कम से कम मात्रा में निकले। इसके साथ ही उन अवशिष्ट पदार्थो का संग्रहण या बहिष्करण की व्यवस्थाएं ऐसी की जानी अपेक्षित है जिससे जन सामान्य को किसी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी परेषानी ना उइानी पड़े । उत्पादन बढ़ाने पर भी पर्याप्त ध्यान देना चाहिए । यदि उत्पादन बढ़ेगा तो आय भी बढ़ेगी स्वहित के बजाय समाज हित, राष्ट्रहित पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए ।





Kagaj Ke Peking Kro / कागज के पेकिंग करों - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD89)



थैल्या प्लास्टिक की रखों, दूकानों से दूर।
कागज के पेकिंग करों, समझो ना मजबूर।।

शब्दार्थ :- कशुर = दोश, पेकिंग = किसी वस्तु को बांधना

भावार्थ:- इस युग को यदि प्लास्टिक का युग कह दे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्लास्टिक ने हमारे हृदय में स्थान बना लिया है लेकिन ’वाणी’ कविराज यह निवेदन करना चाह रहे है कि पेकिंग कार्य में प्लास्टिक का अनावष्यक उपयोग नहीं करना चाहिए । भूख और अज्ञानतावश कई मवेषी इन प्लास्टिक की थैलियों को खाद्य सामग्री के साथ-साथ खा जाते हैं और फिर धीरे-धीरे वे रोग ग्रस्त हो कर मर जाते है।
इसलिए जहां तक संभव हो हम सभी को मिलजुल कर बेजुबान जानवरों को स्वास्थ्य के लिए भी श्रेष्ढ निर्णय लेने चाहिए ।






Chije Jo Bekaar / चीजें जो बेकार - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD88)



चीजें जो बेकार की, पैसा लेकर देय।
नई-नई बन आयगी, फिर उतना सुख लेय।।

शब्दार्थ :- चीजे = वस्तुएं, बेकार की  = अनुपयोगी

भावार्थ:- वे वस्तुएं जो हमारी दृष्टि से बेकार की हो पर उन्हें टूट-फूट या भंगार के भाव हम दे देते हैं। कीमती सामग्रियां कौड़ियें के भाव देकर घरों से हटा देते हैं । ’वाणी’ कविराज यह कहना चाहते है कि आधुनिक पद्धतियों द्वारा नित्य नए आविष्कारों द्वारा उन्हीं नकारा वस्तुओं से पुनः उसी प्रकार की नई वस्तुएं बनने लग गई है। वे वस्तुएं फिर उसी प्रकार हमारी सहायता करती हैं । पहले की भांति पुनः प्रदान करती है।




Jahrili Bhaap /जहरीली भाप - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD87)




उद्योगों से निकलती, जो जहरीली भाप।
दुबारा उपयोग करें, रहें स्वस्थ तब आप।।

शब्दार्थ :- दुबारा = दुसरी बार, जहरीली भाप = विशैली भाप

भावार्थ:- कई उद्योग धन्धे ऐसे हैं जिनसे उत्पादन प्रक्रिया के अन्तर्गत कई प्रकार की विशैली गेसें निकलती हैं । इनसे वातावरण निकटतम बस्तियों के आम आदमी के स्वास्थ्य पर धीरे-धीरे प्रतिकूल प्रभाव पड़ता, जिससे कई प्रकार की बीमारियां उत्पन्न होती हैं। ’वाणी’ कविराज कहते है कि ऐसी नई वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करते हुए उन्हीं जहरीली गेसों के द्वारा यांत्रिक अभियन्ताओं की सहायता से उर्जा का उत्पादन कर सकते हैं। यंत्रों द्वारा कुछ परिवर्तन करके निकलने वाली जहरीली गेस की मात्रा भी कम कर सकते हैं।




Punarchakran Samjai / पुनर्चक्रण समझाय - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD86)



प्लास्टिक डिब्बे बोतले, पुनर्चक्रण समझाय।
सावधानियां जो रखी, नई चीज हम पाय।।

शब्दार्थ :- पुनर्चक्रण = किसी नकारा वस्तु को फिर से नया स्वरूप देना

भावार्थ:- घरों में कई वस्तुएं ऐसी होती हैे जिन्हें हम अनुपयोगी या नकारा समझ कर अक्सर फेंक दिया करते हैं यदि उन्हीं वस्तुओं से दैनिक जीवन के उपयोग की कोई नई चीज हम बनाते है तो यह कार्य कई दृष्टिकोणों से लाभदायक सिद्ध होता उदाहरणार्थ सामान्य घरों में प्लास्टिक के डिब्बे, बोतलें लिफाफे, अखबार आदि कई वस्तुएं हैं जिन्हें थोड़े से परिश्रम से हम दैनिक उपयोग की अन्य वस्तुओं का स्वरूप दे सकते हैं ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि इससे बच्चों में मितव्ययता व स्वरोजगार के संस्कार आते हैं जो उनके भावी जीवन में कई प्रकार से धनार्जन की दृष्टि से सहायक सिद्ध होते है।।






जनसंख्या इस देश की, हुई सवा सौ करोड़ ।
आबादी बढ़ती गई, आ रहें विकट मोड़।।
शब्दार्थ :- विकट मोड़ = चिन्ताजनक स्थिति,

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि जनसंख्या की दृष्टि से देश की स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है गत जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या 100 करोड़ के ऊपर पहुंच गई । यदि अब भी हम संभलेंगे नही तो एक दिन हमारी स्थिति ऐसी भयानक हो जावगी जिस पर नियंत्रण पाना बड़ा कठिन होगा।




Bijli Ke Sab Kaam /बिजली के सब काम - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD84)



देखो खटके ध्यान से, बिजली के सब काम ।
पंखे व्यर्थ चले नहीं, व्यर्थ लगेंगे दाम।।

शब्दार्थ :- स्विच = बिजली के स्वीच, व्यर्थ = बिना उपयोग के

भावार्थ:- कमरा, किचन, गेस्टरूम इत्यादि किसी भी कमरे को जब हम छोड़ कर या बन्द करके जा रहे होते तब इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं कोई स्वीच आन (चालू) तो नहीं हैं यदि भूल से ऐसा हो गया तो बिजली के उपकरण आपके लौटने तक चलते रहेंगे । बल्ब ट्यूबलाईट, पंखा, टी.वी. जो चलते हुए रह जाएंगे उस व्यर्थ जली हुई बिजली आपको निष्चित समयावधि के भीतर दाम चुकाने पड़ेंगे । इसलिए हमें सार्वजनिक स्थानों पर तो विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योकि उसमें एम सभी का पैसा लगता है।





Sukhi Dakiya Paid Ki / सूखी डाल्या पेड़ की - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD83)





सूखी डाल्यां पेड़ की, दें उनको कटवाय ।
टेबल, कुरसी, खिड़कियां, जो चाहो बनवाय।।

शब्दार्थ :- चाहो = मन पसन्द

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि जो-जो पेड़ या डालियां पूर्णतः सूख गई हैं उन्हें काटने में कोई हानि नहीं है। अच्छी सूखी हुई लकड़ी यदि जलाने के काम में ली जाती है तो वह ज्यादा अच्छी जलेगी और यदि उससे टेबल, कुर्सी, किवाड़, खिड़की इत्यादि बनवाए जाते हैं तो वे भी श्रेष्ठ रहेंगे। इसलिए फर्निचर निर्माण की दृष्टि से सूखी लकड़ी ही काटनी चाहिए ।



Gar gar Chule Ve Lage / घर-घर चूल्हे वे लगें - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD82)





घर-घर चूल्हे वे लगें, धूॅआ फैंके दूर।
रोशनी बराबर रही, सुख पावें भरपूर।।

शब्दार्थ :- नेत्र ज्योति = आँखों की रोशनी

भावार्थ:- एक ऐसी कल्पना की गई है कि घर-घर में यथासंभव उन चूल्हो का उपयोग हानेा चाहिए जिनसे लगाए गए ईधन का धुॅआ सीधा उपर जाता हो । इससे सबसे बड़ा लाभ भोजन पकाने वाली के नेत्रों को होगा । वे अन्य की तुलना में ज्यादा नयनसुख भोगती हैं।




Pawan Chakiya Jab Chale / पवन चक्कियां जब चलें - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD81)






पवन चक्कियां जब चलें, कर बिजली के काम।
अनन्त ऊर्जा है यहीं, लगे न कुछ भी दाम।।

शब्दार्थ :- पवन चक्कियां = हवा से चलने वाली चक्कियां अनन्त = जिसका कोई अन्त नहीं हो, दाम = मूल्य/धन/पैसा

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि किसान भाईयों को चाहिए कि प्राकृतिक उर्जा के स्त्रोतों को भलीभांति समझ कर उनका कृषि कार्यो में अधिकाधिक सहायोग लेना चाहिए । कुओं से पानी निकालने में पम्प चलाने में कई जगहों पर पवन चक्कियों का उपयोग किया जाता है। इन्हीं कार्यो को हम बिजली से भी कर सकते किन्तु बिजली का हमें पैसा चुकाना पड़ता है। पवन चक्की हवा से चलती है। हम हवा का जीवन भर उपयोग करें कभी कोई नगद राषि नहीं चुकानी पड़ती है। हमें प्राकृतिक स्त्रोतों पर अधिकाधिक आश्रित रहना चाहिए। इससे फसलों पर अनावश्यक अर्थिक भार नहीं पडे़गा।




Lagai Gobar Gais /लगाय गोबर गैस - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD80)




गाय भैंस घर में जहां, लगाय गोबर गैस।
चार-चार चूल्हे चलें, चलाय चाहे मेष।।

शब्दार्थ :- मेष = सार्वजनिक भोजनाजय

भावार्थ:- जिन धरों में गाय भैंस मिलते हैं वहां गोबर गेस संयंत्र लगाना कई दृष्टिकोणों से लाभदायक हैं जहां चूल्हा फूंकते समय गृहिणी आंसू बहाने लग जाती है, किन्तु गोबर गेस संयंत्र लगाने से एक स्थान पर चार-चार चूल्हे भी यदि एक साथ जलाए जाएं तो भी गृहिणी को धुंए से तनिक भी पीड़ा नहीं होगी। चाहे उस स्थान पर गोबर गैस से पूरा मेष चलाओं, कभी धुंए से परेशानी उत्पन्न नहीं होगी ’वाणी’ कविराज यह कहना चाहते हैं कि आधुनिक उपकरणों द्वारा प्रदत्त सुख-सुविधाओं के बारे में स्त्रियों एंव ग्रामीणों को भी पर्याप्त ज्ञान कराना चाहिए ।



Ese Sundar School /ऐसे सुन्दर स्कूल - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD79)






गांव शहर ढाणी सभी, ऐसे सुन्दर स्कूल।
पल-पल हम सब को दिखे, खिले हुए सब फूल।।

शब्दार्थ :- ढाणी = कच्चे घरों की छोटी सी बस्ती

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि हमारे देश के शहर गांव सभी सार्वजनिक स्थल प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण हों चारों तरफ खूब हरियाली हो। वहां पहुँचत ही हर मल को अपार प्रसन्नता का अनुभव जिधर दृष्टि पड़े उधर इतने हरे-भरे पेड़-पौधो, नाना प्रकार के खिले हुए फूल दिखई दें कि दर्षकों के तन, मन प्रफुल्लित एवं उर्जावान हो जाएं ।




Dekho Kudadan / देखो कूड़ादान- Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD78)




कूड़ा कचरा डालने, देखो कूड़ादान।
गांव-षहर को यूं रखें, जैसे निजी मकान।।

शब्दार्थ :- कूड़ादान = कचरा पात्र

भावार्थ:- आवासीय घरो को कचरा, कूडा-करकट हर कहीं पर नहीं फेंकना चाहिए। सड़क पर फेंकते समय इतना सा ध्यान लगा लें कि आस-पास कूड़ादान (डस्टबिन) कहां पर है, यथासंभव उसी में कचरा डालने का प्रवृति विकसित करनी चाहिए।
’वाणी’ कविराज कहना चाहते है कि आपने षहर को भी इसी प्रकार साफ-स्वच्छ रखने का प्रयास करें, जैसे अपने स्वयं के मकान को रखते हैं। ऐसे अच्छो संस्कार जब हम अपने बच्चों में उत्पन्न करें तो सम्पूर्ण पर्यावरण को षुद्ध करने के इस महाभियान में करोड़ो नन्हें-मुन्हें हाथों का भी एक साथ सहयोग मिलेगा ..............






udhyog dhande jab lage /उद्योग धन्धे जब लगें - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD77)






उद्योग धन्धे जब लगें, पूरा ध्यान लगाय।
बिजली-धूंआ खेत को, हानि नहीं पहुंचाय।।

शब्दार्थ :- पहले ध्यान लगाय = पूर्व अनुमान लगा लेना

भावार्थ:- जहां कहीं भी उद्योग स्वीकृृत होते हैं । उस समय यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि इस उद्योग के लिए कितनी बिजली का उपयोग होगा, इसके धुंए से जो वायु प्रदुषण होगा उसका प्रभाव कितने क्षैत्र पर पडे़गा। एक कच्चा अनुमान यह पहले लगा लेना चाहिए। उसकी पूर्ति हेतु उसी औद्योगिक इकाई को वृक्षारोपण का कार्य या पर्यावरण संबंधी को कोई छोटा-बड़ा प्रोजेक्ट दे देना चाहिए, जिससे उस क्षैत्र विषेष को उस इण्डस्ट्रीज कारण पर्यावरण की दृष्टि से हानि नहीं पहुंचे।






gobar kitna kaam ka /गोबर कितना काम का - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD76)






गोबर कितना काम का, इसे न आप जलाय।
खेतों में ही डालना, भू उपजाऊ बनाय।।

शब्दार्थ :- उपजाऊ बनाय = खेतों को अधिक पैंदावार के लिए योग्य बनाना

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते हैं कि कृषि-कार्य में गोबर बड़ा ही उपयोगी है। किसान भाईयां को यह जानकारी देनी चाहिए कि न तो गोबर को बेचना चाहिए न ही उसे जलाना चाहिए। इन दोनों कार्यो से ज्यादा श्रेष्ठ कार्य यह है कि उसी गोबर को समय आने पर खेतों में छिड़कना चाहिए, जिससे खेतों का उपजाऊपन बढ़ता है। फसले ज्यादा पैदा होगी।




naap tol kr khad do /नाप-तोल कर खाद देा - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD75)






बंजर भूमि जहां दिखे, वहां उगाओ घास।
नाप-तोल कर खाद देा, चरे पशु आस-पास।।

शब्दार्थ :- बंजर भूमि = वह भूमि जिस पर कुछ भी पैदा न होता हो, ।

भावार्थ:- यदि आस-पास कहीं ऐसी जगह है जिस पर कई वर्षो से कुछ भी पैदा नहीं होता है। योजनाबद्ध तरीके से वहां पर घास लगा देवें। समय-समय पर आवश्यकतानुसार खाद डालते रहें। जब घास बढ़ जाए तब वहां पशुओं को चराने के लिए ले जाए । इससे दो लाभ मिलेंगें। एक तो भूमि बांझपन समाप्त होगा दूसरा पषु वहां चरेंगें तो खेत सुरक्षित रहेंगे । दुधारू खूब दूध देंगें और खेतों से खूब पैदावार होगी।






khet rahe aabad / खेत रहें आबाद।- Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD74)





घास-पात से भू ढ़की, हरी-हरी दी खाद।
नियत जगह सब पशु चरें, खेत रहें आबाद।।

शब्दार्थ :- भू = भूमि,  नियत जगह  = निष्चित जगह, खेत रहे आबाद = खेत सुरक्षित रहे

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि खेतों में हरी-हरी घास-पत्ती की खाद बहुत ही लाभदायक सिद्ध होती हैं । खेतों की सीमाएं बनादी जाए और जानवरों के लिए चरने का स्थान निष्चित होने से खेत पूर्णतः सुरक्षित रह सकेंगें। हमें चाहिए कि दोनों की अलग-अलग व्यवस्थाओं पर पर्याप्त ध्यान देंगे तो फसलें अच्छी होगी ।


Soch Samaj Kr Khaad Chidko / सोच समझ खाद छिड़को - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD73)






सोच समझ खाद छिड़को, कम ज्यादा ना होय।
मिट्टी की जांचे करो, फसलें ज्यादा होय।।

शब्दार्थ :- मृदा जांच  = खेत की मिट्टी की जांच करवाना,  दूनी = दुगनी

भावार्थ:- किसान भाईयों को चाहिए कि खेतों में खाद छिड़कते वक्त यह सुनिष्चित करलें कि खाद की कितनी मात्रा छिड़कनी हैं खाद की कम मात्रा फसल की पैदावार कम कर देती है तो ज्यादा मात्रा में खाद फसल को जला देती हैं। दोनों ही तरह से फसलों को नुकसान ही होता है। ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि समय-समय पर खेत की मिट्टी की जांच करवाते रहना चाहिए जिससे यह भी ज्ञात हो जाएगा कि कौनसी फसल किस खेत के लिए सर्वक्षेष्ठ रहेगी। पैदावार अधिक से अधिक मिले इसक लिए कृषि विज्ञान का पूर्ण सहयोग लेगा हर दृष्टि से लाभदायक है।






Khatte Mithe Fal Mile / खट्टे-मीठे फल मिले - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD72)





पोखर में मिलते रहे, पानी के अपवाह।
खट्टे-मीठे फल मिले, पूर्ण होय हर चाह।।

शब्दार्थ :- पोखर = छोटे तालाब, पानी के अपवाह = पानी का व्यर्थ बहना, नीर = पानी, चाह = ईच्छाएं

भावार्थ:- जगह-जगह बांध और तालाब बनाने से सबसे बड़ा लाभ यह हुुआ कि पानी का व्यर्थ बहना बन्द हो गया। जल का अपवाह बन्द हो गया। एक ही स्थान पर पानी की अपार मात्रा संग्रहित होने से सिंचाई में बहुत सहयोग मिला। खेतों की पैदावार बढ़ी और कृषकों की अभिलाषाए पूर्ण होने लगी ।


Pyare Pyare Paid / प्यारे-प्यारे पेड़ - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD71)





लगा सके जितने लगा, प्यारे-प्यारे पेड़।
पानी पिलाय कर कहो, बढ़ो-बढ़ो रे पेड़।।

शब्दार्थ :- बढ़ो हे पेड़ = ऐसी हार्दिक भावना प्रकट करना कि पेड़-पौधों की शीध्र वृद्धि हो ।

भावार्थ:- पर्यावरण के संतुलन का बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण ही सर्वक्षेष्ठ उपाय है इसलिए ’वाणी’ कविराज कहते है कि है सज्जनों इस मनुष्य जीवन में आप अपनी ओर से अपने इच्छित स्थानों पर 5-10-20-50 जितने चाहो उतने पेड़ लगाकर उन्हे पुत्रवत् बड़े करें। प्रतिदिन प्रेम पूर्वक उन पौधों को देव-पूजन का बचा हुआ जल पानी की बाल्टी में मिलाकर पौधों को पिलाते हुए कन्हें शीध्र बड़े होकर हमें खूब फल-फूल छाया इत्यादि देवें । ’वाणी’ कविराज कहते है कि यह वैज्ञानिक सत्य हैं कि पौधे हमारी भावनाओं को समझने में सक्षम होते हैं।






Janwar Ab Kaha Chare / जानवर अब कहां चरे - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD70)





दुनिया की तष्वीर में, ढ़ाई प्रतिशत देश ।
जानवर अब कहाँ चरे, भूमि रही ना शेष।।

शब्दार्थ :- तश्वीर = नक्षा

भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि संसार नक्षे का क्षैत्रफल की दृष्टि से अवलोकन करें तो ज्ञात होगा कि विश्व  के क्षैत्रफल की तुलना में भारत का भौगोलिक क्षैत्रफल ढाई प्रतिषत ही है आबादी की दृष्टि से विष्व में हमारे देष का दूसरा स्थान है। इस ढाई प्रतिशत वाले देश के भी अधिकाषं भाग में जानवर चरते हैं कृषि योग्य भूमि दिन प्रतिदिन कम होती जा रही हैं। हमें चाहिए कि मवेषियों के लिए चरागाह निर्धाति क्षैत्र में हो जिससे फसलें नष्ट न हो सके ।




Ab To Jago Sajjano / अब तो जागो सज्जनों - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD69)




चार माह मेह बरसा, चार दिवस अब होय।
अब तो जागो सज्जनों, कभी चार पल होय।।

शब्दार्थ :- मेह बरसे = वर्षा होना, चेतो = जागृत होओ

भावार्थ:- कुछ ही दशकों, पूर्व हमारे देश में वर्षाकाल में चारों ही महिनें वर्षा होती रहती थी । वन कटने, पर्यावरण प्रदूषित होने से आजकल यह अवधि घटकर लगभग चार दिन हो गई। ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि अब भी इतना समय हैं कि हम सभी मिलकर इस पर्यावरणीय संकट को दूर कर सकते हैं। यदि हमने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया तो आने वाले कुछ ही वर्षो में वर्षाकाल की अवधि चार दिनों से घट कर चार पल हो जाएगी। इसलिए हमें चाहिए कि संगठन बना कर इस महापुनीत कार्य में लगें, अथक परिश्रम करते हुए इस विकट स्थिति को संभाल लेवें । यह वनदेवी मानव जाति पर अवश्य प्रसन्न होगी।





Kishan Sukha Jai/ किसान सूखा जाय - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD68)






बार-बार सूखा पड़े, किसान सूखा जाय।
भूखे-प्यासे पशु मरे, मनुज समझ ना पाय।।

शब्दार्थ :- सूखा = आकाल, किसान सूखा जाय = कृषक वर्ग की मार्मिक पीड़ा, मनुज = मनुष्य,

भावार्थ:- औसत बारीश  की मात्रा में ज्यादा कमी होने से सूखा पड़ता है। एक के बाद एक यदि लगातार 3-4 वर्षो तक सूखा पड़ता है। तो कृषक वर्ग सबसे ज्याद प्रभावित होता है। किसान दुःख से सूख जाता है। अकाल का प्रभाव फसल और किसान पर ही नहीं पशुओं पर भी पड़ता है। हरी घास व चारे के आभाव में बेचारे लाखों पशु आकाल मौत मर जाते हैं। ’वाणी’ कविराज कहते है कि बेजुबां जानवर अपनी पीड़ा कहते मर जाते हैं किन्तु लोभी स्वार्थी, मनुष्य उसकी बात को सुनना ही नहीं चाहता हैं। हम प्रकृति की ओर भी पर्याप्त ध्यान देना चाहिए।