बून्द-बून्द के खेल हैं, बून्द-बून्द तरसाय।
बून्द मिले ना बून्द को, बून्दें गिरती जाय।।
शब्दार्थ :- बून्द = पानी की बून्द/जीवात्मा/आंसू
भावार्थ:- संसार में सब कुछ पानी की बून्दों का ही खेल हैं जल जीवन का ही नहीं सम्पूर्ण संसार का आधार हैं। कोई भी प्रमुख कार्य पानी के बिना पूर्ण नहीं होता है। तेज प्यास लगने पर एक बून्द भी पानी के महत्व का पूर्ण अहसास करा देती हैं। ’वाणी’ कविराज कहना चाहते हैं कि तेज प्यास के क्षणों में समय पर पानी नहीं मिलने पर आंसू की बून्दें गिरने लग जाती हैं, अतः पानी के महत्व को भलीभांति समझ कर हमं फिर सभी को समझाना चाहिए