पार नही है ज्ञान का, कभी न कर अभिमान।
नया-नया रोज़ पढ़ना, कर सबका सम्मान।।
शब्दार्थ :- बढ़ते रहो = बौद्धिक विकास करना,
भावार्थ:- संसार में कई प्रकार के विषय है । ज्ञान-वृक्ष की क्रोटि कोटि ष्षाखाएं है एक-एक डाली पर अनन्त पत्ते है ऐसी अन्नत जालियां है सामान्य व्यक्ति जीवनी में उस वट वृक्ष की एक शाखा का भी किंचित ज्ञान ही प्राप्त कर सकता है । इसलिए किसी भी विद्वान को अपने ज्ञान व अनुभव पर अभिमान कदापि नहीं करना चाहिए । ’वाणी’ कविराज कहते है। कि स्वाध्याय द्वारा प्रतिदिन अध्ययन करते रहना चाहिए । ज्ञान के साथ-साथ यदि विनम्रता भी जीवन में आ जाती है । तो वह व्यक्तित्व अवश्य ही चिरस्मरणीय बन जाता है। विद्धान व अनुभवी व्यक्तियों को चाहिए कि वे अपने ज्ञान को सुपात्रों में अनवरण बांटते रहें ।