Chije Jo Bekaar / चीजें जो बेकार - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD88)



चीजें जो बेकार की, पैसा लेकर देय।
नई-नई बन आयगी, फिर उतना सुख लेय।।

शब्दार्थ :- चीजे = वस्तुएं, बेकार की  = अनुपयोगी

भावार्थ:- वे वस्तुएं जो हमारी दृष्टि से बेकार की हो पर उन्हें टूट-फूट या भंगार के भाव हम दे देते हैं। कीमती सामग्रियां कौड़ियें के भाव देकर घरों से हटा देते हैं । ’वाणी’ कविराज यह कहना चाहते है कि आधुनिक पद्धतियों द्वारा नित्य नए आविष्कारों द्वारा उन्हीं नकारा वस्तुओं से पुनः उसी प्रकार की नई वस्तुएं बनने लग गई है। वे वस्तुएं फिर उसी प्रकार हमारी सहायता करती हैं । पहले की भांति पुनः प्रदान करती है।