भूमिगत भूमिगत हुआ, देख-देख नल-कूप।
सूख गए नाले-नदी, सूखे मन के कूप।।
शब्दार्थ :- भूमिगत = आण्डर ग्राउण्ड, जमीन के नीचे रहने वाला, नलकूल = ट्यूबवेल,
भावार्थ:- ’वाणी’ कविराज कहते है कि भारत वर्ष में 3700 एमएचएम भूमिगत जल है जो वार्षिक वर्षा का लगभग 10 गुणा है। अभी इसके केवल 10 प्रतिशत भाग का ही उपयोग किया जा रहा है किन्तु प्रतिदिन हजारों ट्यूबवेल खोदने से जलस्तर तेजी से नीचे उतरता जा रहा हैं । नंदी, नाले, तालाब सूखते जा रहे, वर्षा कम होने लग गई, प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है जिसके प्रमुख कारणों में मनुष्यों की स्वार्थ प्रवृति स्वकेन्दित मानसिकता ही जिम्मेदार है। हमें सभी के हित में ही अपना हित समझना चाहिए।