Begunah Pashu Kat te / बेगुनाह पशु काटते - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD102)

बेगुनाह पशु काटते, बोले ना कुछ बोल।
आखरी फरियाद यही, खोल सके तो खोल।

शब्दार्थ :- बेगुनाह = निर्दोश, फरियाद = प्रार्थना, खोल = जीवनदान देना ।

भावार्थ:- मांसाहार के दृष्टिकोण से हजारो पीढ़ीयों से पशुओं की जीव हत्याएं होती आई हैं। यदि एक न्यायाधीश के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यही तथ्य सामने आता है कि इन जानवरों का दोष यही है कि ये निर्दोश हैं । इतना ही नहीं पशु इतने बेबस और लाचार हैं कि वे अपनी बात अपने दुःख को कह भी नहीं केवल आंसू बहाते हैं ।
’वाणी’ कविराज कहते है कि इतना सब कुछ होने के बावजुद भी वे सब एक निवेदन तो अवश्य करते ही हैं कि हे षेरों की संतानों वीर बहादुरों सुनो यदि मिें खेल सकते हो तो खेल कर हमें जीवनदान देओं ।