बुद्धि मुझे दो शारदा


बुद्धि मुझे दो शारदा, सदन शीघ्र बन जाय ।
कर पूरण स्वर-साधना, देऊ तुझे बिठाय ।।

देऊ तुझे बिठाय, विराजो मेरे घर में ।
ऐसे गीत लिखाय , हो प्रकाश अंतस में ।।

कह `वाणी` कविराज, चित्त में शुध्दी मुझे दो |
रचूं कुंडली शतक , मात सदबुद्धि मुझे दो ||

शब्दार्थ : सद्बुद्धि = श्रेष्ठ बुद्धि, सदन=भवन , नूतन = नया, अंतस में प्रकाश=आत्मज्ञान

शिल्प कला पर सो कुंडलिया
से ली गई कुंडली
कवि अमृत 'वाणी'

आज का आदमी


आज का आदमी
अपनी गरीबी के कारण
बहुत कम
और
पडोसियों की तरक्की से

बहुत
ज्यादा दुखी है

अमृत 'वाणी'

झटपट बरसादो पाणी

कवि:- अमृत'वाणी'