Jhule Lakho Jhulte / झूले लाखो जुलते - Paryavaran Ke Dohe @ Kavi Amrit 'Wani' (PD010)



झूले लाखों झुलते, हरे पेड़ की शाख ।
पूछे शाखाएं सभी, सूखी शाख कैसे ।।

शब्दार्थ:- शाख = ड़ाली,

भावार्थ:- ’’वाणी’’ कविराज कहते हैं कि जन्म के पष्चात कई महिनों तक हरे-भरे पेड़ों की डालियों पर तुम झुले थे पेड़ों की ठण्डी छायाओं में हंसते-खेलते हुए बचपन व्यतीत हुआ । आज उन्हीं पेड़-पौधों पर तुम्हारी आक्रामक दृष्टि क्यों टिकी हुई है। क्या यही उनका अपराध है उन्होंने तुम्हें शीतल छाया दी, मन्द-मन्द शीतल पवन से तुम्हारे बचपन को सुवासित किया । हमें चाहिए कि हम तमाम वनस्पति की अन्र्तमन से रक्षा करने का दृढ़ संकल्प लें। इतना करने पर पेड़-पौधों का मानव जाति पर चढ़ा हुआ कर्ज तो नहीं मगर ब्याज अवश्य  चुका सकेंगे।