संतुलन बिगड़ता गया, विकट घड़ी यह आय ।
समझदार समझे नही, समय रूठता जाय ।।
समझदार समझे नही, समय रूठता जाय ।।
शब्दार्थ :- विकटघड़ी = चिन्ताजनक स्थिति
भावार्थ:- लम्बे समय से पर्यावरण के प्रति उदासीन रहने से आज स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि आम आदमी का सामान्य जीवन कई प्रकार की कठिनाइयों से सामना करते हुए पराजय स्वीकार कर चुका है। कहीं एसिड-वर्षा तो कहीं अनावृष्टि से विगत कई वर्षो से लगातार अकाल की परि स्थितियों से सामना करना पड़ रहा है।
’वाणी’ कविराज कहते हैं कि कुछ बुद्धिजीवी लोग भूत भविष्य को समझने में सक्षमह हैं, किन्तु उनमें राष्ट्रीय भावों की कमी के कारण इन कार्यो के लिए पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं । यह सत्य है कि यदि हम इस समय भी नही संभले तो फिर प्रकृति हम से और ज्यादा रूठ जाएगी । स्थितियां इससे भी ज्यादा भयावह होंगी, इसलिए अभी से ही हमें दूरदर्शिता के साथ ठोस कदम उठाने होंगे ।