हरे-भरे वन हैं अगर, फल पाएंगे रोज ।तन-मन हैं जब संतुलित, रोज मनेगी मोज ।।रोज मनेगी मोज, रहेंगे मिलजुल भाई ।खाना खाना साथ, आय ना कभी दवाई ।।कह 'वाणी' कविराज, गांव-शहर खुशियां भरे ।बड़े करे परिवार, पौधे अगर हरे-भरे ।।
हरे-भरे वन हैं अगर, फल पाएंगे रोज ।
तन-मन हैं जब संतुलित, रोज मनेगी मोज ।।
रोज मनेगी मोज, रहेंगे मिलजुल भाई ।
खाना खाना साथ, आय ना कभी दवाई ।।
कह 'वाणी' कविराज, गांव-शहर खुशियां भरे ।
बड़े करे परिवार, पौधे अगर हरे-भरे ।।