कालरात्रि (सप्तम दिवस )
काला गहरा रंग जो, कालरात्रि है नाम ।
सवारी कर गर्दभ की, राक्षस काम तमाम ।।
राक्षस काम तमाम , शुंभ निशुंभ सब मारे ।
जब मरा रक्तबीज , हर्षित थे देव सारे ।।
कह 'वाणी 'कविराज , कंठ पर विद्युत माला ।
गुड़ केशर की खीर , कभी न उगे दिन काला।।
कवि अमृत 'वाणी'