संता पे किरपा करो

संता पे किरपा करो,
       प्यारा पवन कुमार ।
साँसा सो बरसां चले ,
       सुमिरे यो संसार ॥

कवि अमृत  'वाणी'

आओ ऐसे दीप जलाए............


आओ ऐसे दीप जलाए | 
अंतर मन का तम मिट जाए || 

 मन निर्मल ज्यूं गंगा माता | 
राम भरत ज्यूँ सारे भ्राता || 

 रामायण की गाथा गाए | 
भवसागर से तर तर जाए || 

 चोरी हिंसा हम दूर भगाए |
 वंदे मातरम् मिल कर गाए || 

कवि अमृत 'वाणी'

जीवन ढल गया...........

जो जलना था वो सब जल गया ।
जो गलना था वो सब गल गया ।।
'वाणी' दर्द, दर्द सा लगता नहीं अब ।
दर्द के सांचों में जीवन ढल गया ।।


कवि अमृत  'वाणी'

दोश्त

आओ , सभी से हॅंस-हॅंस कर मिले ।
 मतलबी आॅंखें कल खुले ना खुले ।। 
’वाणी’ ऐसे हाथ मिलाओ दोश्तो से ।
 जमाना कहे आज इनकेे नशीब खुले ।। 
 

 कवि अमृत 'वाणी'

नोटा री गड्डियां

नोटा री गड्डियां
अन कलदारां री खनक में तो
ई दुनिया में हगलाई हमझे ।

पण लाखीणा मनक तो वैज वेवे
 जो रोजाना
मनक ने मनक हमझे ॥

'वाणी'
अतरी झट बदल जावे
ओळखाण मनकां की
आछा दनां  में मनक
मनक ने माछर  हमझे ।

अन मुसीबतां में
मनक
माछर नै  मनक हमझे ॥

कवि अमृत  'वाणी'

मुक्तक