जंगल के राजा रहे , सदियों से जो शेर ।
चिड़ियाघर के पिंजरे , होते रैन-बसेर ।।
होते रैन-बसेर , ताकते नव काॅलोनी ।
फैक्ट्री धुंआ देख , हॅंसे योजना सलोनी ।।
कह 'वाणी' कविराज , कटे पेड़ मन-मन कहे ।
उजड़ रहे परिवार , न जंगल के राजा रहे ।।