पल-पल खतरे बढ़ रहे, चलना सब कुछ छोड़ ।
साथ लेय परिवार को, चलें मुल्क मुंह मोड़ ।।
चलें मुल्क मुंह मोड़, न कोई लगते अपने ।
चलो सुबह से शाम, फिर हो साकार सपने ।।
कह 'वाणी' कविराज, शरणदाता मिले सकल ।
भाई जैसे मान,कला सिखलाई पल-पल ।।
कवि अमृत 'वाणी'