कुछ दिखे कुछ दिखे नहीं, करे रोग बीमार ।
धवल नयन चमड़ी धवल, रोगी हुए हजार ।।
रोगी हुए हजार, मुश्किल उनका उपचार ।
रहते उनसे दूर, दूर-दूर दे समाचार ।।
कह 'वाणी' कविराज, अपना जान सोचो कुछ ।
जब नियमित हो जांच, तब होय अच्छा सब कुछ ।।