छप्पन भोग लगाय जो , सकल देव हरषाय ।।
सकल देव हरषाय , गोवर्धन सब पूजते ।
पूजित गौ अरु बैल, सहर्ष प्रसाद लूटते ।।
कह 'वाणी'कविराज , मनाते बरस-दर- बरस ।
मिटते सभी विकार , भोजन होय जब षटरस ।।