काशी ही वाराणसी, देव दिवाली आय ।
कार्तिक की है पूर्णिमा, दर्शक मन हर्षाय ।।
दर्शक मन हर्षाय, सकल देव गण पधारे ।
घाट-घाट पर दीप, वर मुद्रा खड़े सारे ।।
कह'वाणी'कविराज, लाखों अंखियां प्यासी ।
नहाय गंगा घाट, काशी ही वाराणसी ।।