बैकुंठ चतुर्दशी
चतुर्दशी बेकुंठ की, आती कार्तिक मास ।
यह हरि-हर का मिलन है, पूरण करती आस ।।
पूरण करती आस, खुले बैकुंठ के द्वार ।
दे दिया आशुतोष, सुदर्शन चक्र उपहार ।।
कह 'वाणी'कविराज, यही तिथि पितृ-पूजन की ।
घर-घर पूजा पाठ, चतुर्दशी बैकुंठ की ।।