राम चालीसा (मेवाड़ी में), by कवि अमृत वाणी (चित्तौड़गढ़)




राम चालीसा 

(मेवाड़ी में)


 कौशल्या रा लाड़ला, केवे जग जगदीश ।

किरपा करजो मोकळी, रोज नमावां शीश ।।

सुणजो माता जानकी, दया करो रघुवीर ।

चारों पुरुषारथ मलेमले ओर महावीर ।।

 

जय-जय दशरथ राम दुलारा ।

माता कौशल्या रा प्यारा ।।

चेती नोमी ले अवतारा ।

भरी दुपेरी मंगलवारा ।।

 

सूरजवंशी सूरज  जनम्या ।

सूरज रा घोड़ा भी थमग्या ।।

विश्वामित्र गुरुवर पधार्या ।

भांत-भांत रा वेद उचार्या ।।

 

गौतम नार अहल्या तारी ।

राजी व्या मुनि गौतम भारी ।।

टूट धनुष व्या टुकड़ा वांका ।

मांडा मँडग्या सब भायांका ।।

 

परसराम अर लखन लड़ाया ।

मीठी बोली राम मनाया ।।

लगन पतरिका जनक भिजाई ।

राघव बरात  सज-धज आई ।।

 

सीता पहराई वरमाला ।

मन-मन मुळक्या दीनदयाला ।।

चाली चाल मंथरा दासी ।

झर-झर रोय अयोध्यावासी ।।

 

कइ को कइ केकई केगी ।

दो वचनां में जिवड़ो लेगी ।।

मुकट भरत ने थां पेराओ ।

ओर  राम  वनवास खंदाओ ।।

 

मात-पिता रा आज्ञाकारी ।

राज-पाट छोड्या धनुधारी ।।

काँकड़ काँकड़ सिय रघुराई ।

लारे चाल्या लछमण भाई ।।

 

राखी केवट वा चतराई ।

कुल की नैया पार लगाई ।।

संत मिलण व्या रघुवर  राजी ।

जनम-मरण री जीत्या बाजी ।।

 

वाल्मीकि चित्रकूट दिखाया ।

वठे विश्वकर्माजी आया ।।

भई भरत मलबा ने आया ।

राम-खड़ऊ सूँ राज चलाया ।।

 

अत्री आश्रम मन हरषाया ।

अनुसुइया पति धरम बताया ।।

मायापति ने छळगी माया ।

दुड़ा दुड़ा ने हिरण थकाया ।।


कपट वेश लंकापति आया ।

साधूड़ा रा भेख लजाया ।।

सीता हरण जटायु बताया ।

राम लखन मल कपि हरषाया ।।

 

उड़ता उड़ता हनुमत आया ।

राम लखन सुग्रीव मलाया ।।

मां सीता रो पतो लगायो ।

हर वानर रो मान बड़ायो ।।

 

अशोक वाटिका में हनुमाना ।

नाकी मुन्दड़ी राम बखाना ।।

हड़ूमान रा करतब भारी ।

सोना री वां लंका बारी ।।

 

वीभीषण ने गळे लगाया ।

तिलक लगाय राजा बणाया ।।

राम लिख्या नल नील शिला पे ।

भाटा तरग्या समदरिया पे ।।

 

राम-सेतु राघव सेनाणी ।

दुनिया में जाणी पेचाणी ।।

धम-धम वानर सेना चाली ।

खड्ग लियां ज्यूं आई काळी ।।

 

लखन शक्ति से होंश गंवाया ।

पवनपुत्र संजीवन लाया ।।

ग्या बेरी घर बेरी मार्या ।

सब रागस भव-सागर तार्या ।।

 

नी मान्यो रावण अभिमानी ।

ले गयो सबने महाज्ञानी ।।

प्रगट हुया झट अगनी देवा ।

साँची सीता पाछी देवा ।।

 

सेनापति सब विमान बिठाया ।

अवधपुरी में रघुवर आया ।।

नर नारी सगळा हरषाया ।

पेल दिवाळी दिवा जळााया ।।

 

अश्वमेध-यज्ञ रघु रचाया ।

लव-कुश कई सवाल उठाया ।।

रह्या देखता लव-कुश भाई ।

धरां लाड़ली धरां समाई ।।

 

वाणी’ अरजी अब मत टाळो ।

भगतां हिरदां बढे़ उजाळो ।।

घट-घट या चालीसा गावे ।

राम-राज झट पाछो आवे ।।


राम-राम शिवजी जपे, हर-हर बोले राम ।

दोयां ने लारे जपो, सिद्ध होय सब काम ।।

हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता