राम चालीसा
(मेवाड़ी में)
कौशल्या रा लाड़ला, केवे जग जगदीश ।
किरपा करजो मोकळी, रोज नमावां शीश ।।
सुणजो माता जानकी, दया करो रघुवीर ।
चारों पुरुषारथ मले, मले ओर महावीर ।।
जय-जय
दशरथ राम दुलारा ।
माता
कौशल्या रा प्यारा ।।
चेती
नोमी ले अवतारा ।
भरी दुपेरी
मंगलवारा ।।
सूरजवंशी सूरज
जनम्या ।
सूरज रा घोड़ा भी थमग्या ।।
विश्वामित्र गुरुवर पधार्या ।
भांत-भांत रा वेद उचार्या ।।
गौतम
नार अहल्या तारी ।
राजी
व्या मुनि गौतम भारी ।।
टूट धनुष
व्या टुकड़ा वांका ।
मांडा
मँडग्या सब भायांका ।।
परसराम अर लखन लड़ाया ।
मीठी बोली राम मनाया ।।
लगन पतरिका जनक भिजाई ।
राघव बरात
सज-धज आई ।।
सीता
पहराई वरमाला ।
मन-मन
मुळक्या दीनदयाला ।।
चाली
चाल मंथरा दासी ।
झर-झर
रोय अयोध्यावासी ।।
कइ को कइ केकई केगी ।
दो वचनां में जिवड़ो लेगी ।।
मुकट भरत ने थां पेराओ ।
ओर राम वनवास खंदाओ ।।
मात-पिता
रा आज्ञाकारी ।
राज-पाट
छोड्या धनुधारी ।।
काँकड़
काँकड़ सिय रघुराई ।
लारे
चाल्या लछमण भाई ।।
राखी केवट वा चतराई ।
कुल की नैया पार लगाई ।।
संत मिलण व्या रघुवर राजी ।
जनम-मरण री जीत्या बाजी ।।
वाल्मीकि
चित्रकूट दिखाया ।
वठे विश्वकर्माजी
आया ।।
भई भरत
मलबा ने आया ।
राम-खड़ऊ
सूँ राज चलाया ।।
अत्री आश्रम मन हरषाया ।
अनुसुइया पति धरम बताया ।।
मायापति ने छळगी माया ।
दुड़ा दुड़ा ने हिरण थकाया ।।
कपट वेश
लंकापति आया ।
साधूड़ा
रा भेख लजाया ।।
सीता
हरण जटायु बताया ।
राम लखन
मल कपि हरषाया ।।
उड़ता उड़ता हनुमत आया ।
राम लखन सुग्रीव मलाया ।।
मां सीता रो पतो लगायो ।
हर वानर रो मान बड़ायो ।।
अशोक
वाटिका में हनुमाना ।
नाकी
मुन्दड़ी राम बखाना ।।
हड़ूमान
रा करतब भारी ।
सोना
री वां लंका बारी ।।
वीभीषण ने गळे लगाया ।
तिलक लगाय राजा बणाया ।।
राम लिख्या नल नील शिला पे ।
भाटा तरग्या समदरिया पे ।।
राम-सेतु
राघव सेनाणी ।
दुनिया
में जाणी पेचाणी ।।
धम-धम
वानर सेना चाली ।
खड्ग
लियां ज्यूं आई काळी ।।
लखन शक्ति से होंश गंवाया ।
पवनपुत्र संजीवन लाया ।।
ग्या बेरी घर बेरी मार्या ।
सब रागस भव-सागर तार्या ।।
नी मान्यो
रावण अभिमानी ।
ले गयो
सबने महाज्ञानी ।।
प्रगट
हुया झट अगनी देवा ।
साँची
सीता पाछी देवा ।।
सेनापति सब विमान बिठाया ।
अवधपुरी में रघुवर आया ।।
नर नारी सगळा हरषाया ।
पेल दिवाळी दिवा जळााया ।।
अश्वमेध-यज्ञ
रघु रचाया ।
लव-कुश
कई सवाल उठाया ।।
रह्या
देखता लव-कुश भाई ।
धरां
लाड़ली धरां समाई ।।
‘वाणी’ अरजी अब मत टाळो ।
भगतां हिरदां बढे़ उजाळो ।।
घट-घट या चालीसा गावे ।
राम-राज झट पाछो आवे ।।
राम-राम
शिवजी जपे, हर-हर बोले राम ।
दोयां
ने लारे जपो, सिद्ध होय सब काम ।।
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता