नीलाम्बर
के उस पार छिपकर बैठा वो अचूक बाजीगर विगत लाखों वर्शो से जिसको जैसे
नचाना चाहता है उसे उसकी लाख इन्कारियों के बावजूद भी उसी तरह नाचना पड़ता
है जिस तरहां ईश्वर चाहता है। वह ऐसा हठीला हाकिम भी है जो अक्सर किसी की
सिफारिशें नहीं सुनता। कवि अमृत ‘वाणी’