मंजिल यँू बढ़ती रहे, बने वह विजय-स्तम्भ ।
अजातशत्रु सभी यहाँ, बने प्रकाश-स्तम्भ ।।
बने प्रकाश-स्तम्भ, जगत सौ-सौ सुख पावें ।
समझ कर वास्तु-ज्ञान, स्वर्ग-सा सदन बनावें ।।
कह `वाणी´ कविराज, होय सभी पल-पल सफल ।
कष्ट कभी ना होय, हो कामयाब हर मंजिल ।।
अमृत `वाणी'